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कविता-कौमुदी
 

कोई कहै आन कोई आपहि भगवान बनै कोई कहै दूरि
कोई नेरेही लखाव रे। कोई कहै रूप औ अरूपवान कोई कहै
कोई कहै निर्गुन कोई सगुन बताव रे॥ तामें मति भरमैं औ
भूलि के न बाद ठान ताहिँ क्या बिरानी पड़ी अपनी सुरझाव
रे। अदभुत प्रताप मूरि जीवन है रसिकन की सदा रसिक
भक्तन के सरन रहु बावरे॥२॥

 

राग सोरठ मलार

तो बिन को यह नेह निबाहै।

ऐसी हित प्रतिपालन हारो तू ही एक सदा है।
हँसे हँसत बोले बोलत हँसि मिले मिलन को उमाहै॥
जोइ जोइ चाह प्रताप करत चित सोइ सोइ राज तू चाहैगा॥३॥

राग धमार

बेसर थिरकि रही अधरन पै मोती थिरकत जात।
लखि प्रताप पिचकारी लाल जी के रहि गई हाथ कि हाथ॥४॥


पजनेस

जनेस का जन्म पन्ना में हुआ। शिवसिंह सरोज में इनका जन्म-संवत् १८७२ लिखा है। इनका रचा हुआ कोई ग्रंथ अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ। स्वर्गीय बाबू राम कृष्ण वर्मा ने इनके कुछ छंदों का एक संग्रह "पजनेस प्रकाश" नाम से प्रकाशित किया था। उसके देखने से पजनेस एक प्रतिभाशाली कवि जान पड़ते हैं। ये शृंगारी कवि थे। इनकी कविता में कहीं कहीं अश्लील वर्णन भी आ