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कविता-कौमुदी
 

मैं ताकी बदजाती बदजाती ह्वाँ उराहना॥ग्वाल कवि वे ही
परसिद्ध सिद्ध ते हैं जग वही परसिद्ध ताकी इहाँ ह्वाँ सराहना।
जाकी इहाँ चाहना है ताकी वहाँ चाहना है जाकी इहाँ चाहना
है ताकी वहाँ चाहना॥१४॥

चाहिये जरूर इनसानियत मानस कौ नौबत बजे पै फेर
भेर बजना कहा। जात औ अजात कहा हिन्दू औं मुसलमान
जाते कियो नेह फेर ताते भजनो कहा॥ ग्वाल कवि जाके
लिये सीस पै बुराई लई लाजहू गमाई कहो फेर लजनी कहा।
यातो रँग काहू के न रँगिये सुजान प्यारे रँगे तो रँगेई रहै
फेर तजनो कहा॥१५॥

जिसका जितेक साल भर में खरच तिसे चाहिये तौ दूना
पै सवायो तो कमा रहै। हूर या परी सी नूर नाजनी सहूर
वारी हाजिर हमेश हाय तौ दिल थमा रहै॥ ग्वाल कवि
साहब कमाल इल्म सोहबत हो याद में गुसैयाँ के हमेस
विरमा रहे। खाने को हमा रहै न काहू की तमा रहै जो गाँठ
में जमा रहै तो खातिर जमा रहै॥१६॥

गंगा के न गौरि के गिरीस के न गोविंद के गीत के न
जोत के न जाये राहगीर के। काहू के न संगी रतिरंगी भैंन
भानजी के जी के अति खोटे सोंटे खैहें जमधीर के॥ ग्वाल
कवि कहैं देखो नारी को खसम जानै धर्म को पसम जानैं।
पातक शरीर के। निमक हराम बदकाम करैं ताजे ताजे बाजे
बाजे बेसहूर गुरु के न पीर के॥१७॥

किये हैं करार सो बिसार दये दगादार नंद के कुमार
संग को सँजोगिनी बनै। कौन मुख लैके तोहि ऊधव पठायौ
इहाँ कैसे कही वाने हाय लंक लोगिनी बनै॥ ग्वाल कवियातें
एक बात तूँ हमारी सुन सुनि कै कही है यह तोय सोगिनी