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रामसहायदास
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शृंगार सतसई में सात सौ दोहे बिहारी सतसई के टक्कर के हैं। वास्तव में ये बिहारी के दोहों को लक्षय करके बनाये गये मालूम होते हैं।

शृंगार सतसई से यहाँ कुछ दोहे उद्धृत किये जाते हैं:—

सतरोहैं मुख रुख किये कहै रुखौहैं बैन।
सैन जगे के नैन ये सने सनेहु दुरै न॥१॥
खंजन कंज न सरि लहैं बलि अलि को न बखानि।
एनी की अँस्त्रियान तें ए नीकी अँखियानि॥२॥
गुलुफनि लौं ज्यों त्यों गयो करि करि साहस जोर।
फिरि न फिरयोमुरवानि चपि चित अति खात मरोर॥३॥
पोखि चन्द चूड़हि अली रही भली विधि सेइ।
खिन खिन खोटति नखन छद न खनहुँ सूखन दे॥४॥
सीस झरोखे डारि कै झाँकी घूँघुट टारि।
कैबर सी कसकै हिये बाँकी चितवनि नारि॥५॥
येलि कमान प्रसून सर गहि कमनैत बसंत।
मारि मारि बिरहीन के प्रान करैरी अंत॥६॥
मनरंजन तब नाम को कहत निरंजन लोग।
जदपि अधर अंजन लगे तदपि न नीदन जोग॥७॥
सखि सँग जाति हुती सुती भटभेरो भो जानि।
सतरौंहीं भौंहन करी बतरौंहीं अँखियानि॥८॥
भौंह उँचै अँखिया नचै चाहि कुचै सकुचाय।
दरपन मैं मुख लखि खरी दरप भरी मुसुकाय॥९॥
ल्याई लाल निहारिये यह सुकुमारि बिभाति।
उचके कुचके भार तें लचकिलचकिकटिजाति॥१०॥