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कविता-कौमुदी
 

 

बोधा

बोधा का पहला नाम बुद्धिसेन था। ये सरवरिया ब्राह्मण थे। कोई कोई इनका निवास स्थान राजापुर (जिला बाँदा) और कोई कोई फीरोज़ाबाद (ज़िला आगरा) बतलाते हैं। इनके जन्म-मरण का ठीक समय अभी निश्चित नहीं हो सका है। शिवसिह सरोज में इनका जन्म-संवत् १८०४ लिखा है। अनुमान से यही ठीक जान पड़ता है।

पन्ना दरबार में इनके सम्बंधियों की अच्छी प्रतिष्ठा थी। बालकपन में ये उन्हीं के पास जाकर रहने लगे। ये हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत और फ़ारसी के अच्छे पंडित थे। इनके गुणों से प्रसन्न होकर पन्ना नरेश इन्हे बहुत चाहने लगे। प्यार के कारण उन्होंने ही इनका नाम बुद्धिसेन से बोधा रख दिया। दरबार में सुभान नाम की एक वेश्या थो। बोधा ने उससे कुछ सम्बंध स्थापित कर लिया। जब इसका समाचार राजा साहब को मालूम हुआ, तब उन्होंने बोधा को छः महीने के लिये अपने राज से निकाल दिया। इस अवसर में इन्होंने उस वेश्या के विरह में "विरह वारीश" नामक ग्रंथ की रचना की। छः मास के उपरान्त जब ये फिर दरबार में गये, और राजा साहब को इन्होंने अपना "विरह वारीश" सुनाया। तय राजा ने प्रसन होकर इनसे वर माँगने को कहा। इन्होंने कहा—"सुभान अल्लाह"। राजा ने प्रसन्न होकर सुभान वेश्या इन्हें समर्पित की। अपने "इश्कमामा" में इन्होंने सुभान की बड़ी प्रशंसा की है। पन्ना ही में इनका देहान्त हुआ।