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कविता-कौमुदी
 

कूफन के जालिम दमाद हैं अदेनियाँ ससुर के। चोजन के
चोजी महा मौजिन के महाराज हम कविराज हैं वै चाकर
चतुर के॥५॥

हिलमिलि लीजिये प्रबीनन तें आठो जाम कीजिये
अराम जासों जिय को अराम है। दीजिये दरस जाको
देखिबे को हौस होय कीजिये न काम जासों नाम बदनाम
है॥ ठाकुर कहत यह मन में विचारि देखो जस अपजस
को करैया सब राम है। रूप से रतन पाय चातुरी से धन
पाय नाहक गँवाइयो गँवारन को काम है॥६॥

कोमलता कंज तें गुलाब तें सुगन्ध लैकै चन्द तें
प्रकाश कियो उदित उजेरो हैं। रूप रति आनन तें चातुरी
सुजानन तें नीर लै निवानन तें कौतुक निवेरो है। ठाकुर
कहत योँ मसालौ विधि कारीगर रचना निहारि जन होत
चित चेरो है। कंचन को रंग कै सवाद लै सुधा की बसुधा
को सुख लूटि कै बतायौ मुख तेरो है॥७॥

ग्वारन को यार है सिँगार सुख सोभन को साँचो सर-
दार तीन लोक रजधानी को। गाइन के संग देख आपनो
बखत लेख आनँद विशेष रूप अकह कहानी को। ठाकुर कहत
साँची प्रेम को प्रसंगवारी जा लख अनंग रंग दंग दधिदानी
को। पुण्य नंद जू को अनुराग ब्रजवासिन को भाग यसुमति
को सुहाग राधारानी को॥८॥

आपने बनाइबे को और को बिगारिबे को सावधान ह्वै के
सीखे द्रोह से हुनर हैं। भूल गये करुनानिधान स्याम मेरै
जान जिनको बनायो यह विश्व को वितर है। ठाकुर कहत
पगे सबै मोह माया मध्य जानत या जीवन को अजय अमर