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ठाकुर
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कै न छाती धकधाकरी। अपनी उमंग की निबाहिये की चाह
जिन्हैं एक सो दिखात तिन्हैं बाघ और बाकरी॥ ठाकुर
कहत मैं विचार कै विचार देखो यहै मरदानन की टेक बात
आकरी। गही जौन गही जौन छोड़ी तौन छोड़ दई करी तौन
करी बात ना करी सो ना करी॥१॥

सामिल में पीर में शरीर में न भेद राखै हिम्मत कपट
को उधारै तौ उघरि जाय। ऐसे ठान ठानै तौ बिनाडू जन्त्र
मन्त्र किये साँप के जहर को उतारै तो उतरि जाय॥ ठाकुर
कहत कछु कठिन न जानौ अब, हिम्मत किये तें कहो कहा न
सुधरि जाय। चारि जने चारिहू दिसा तें चारो कोन गहि
मेरु को हिलाय कै उखारैं तो उखरि जाय॥२॥

अन्तर निरन्तर के कपट कपाट खोलि प्रेम को झलाझल
हिये में छाइयतु हैं। लटी भई आप सो भई है करतून जौन
विरह बिथा की कथा को सुनाइयतु है॥ ठाकुर कहत वाहि
परम सनेही जान दुःख सुख आपने विधि सों गाइयतु है।
कैसो उतसाह होत कहत मते की बात जब कोऊ सुघर
सुनैया पाइयतु है॥३॥

जौलों कोऊ पारखीसों होन नहि पाई भेंट तब ही लों
तनक गरीब लों सरीरा हैं। पारखीसों भेंट होत मोल बढ़े
लाखन को, गुनन के आगर सुबुद्धि के गंभीरा हैं॥ ठाकुर
कहत नहि निन्दो गुनवारन को देखिबे को दीन ये सपूत सूर-
बीरा हैं। ईश्वर के आनस तें होत ऐसे मानस जे
मानस सहूर बारे धूर भरे हीरा हैं॥४॥

सुकवि सिपाही हम उन रजपूतन के दान युद्ध बीरता में
नेकहू न सुरके। जस के करैया हैं मही के महिपालन के हिये
के बिशुद्ध हैं सनेही साँचे उरके॥ ठाकुर कहत हम बैरी बेष-