आया है। सम्भव है, इसी भ्रम में आकर लोगों ने उपरोक्त कल्पना की हो।
सीतल हिन्दी के सिवाय संस्कृत और फारसी भी जानते थे। इनकी कविता वर्तमान हिन्दी के ढंग की है। नीचे इनके कुछ छंद लिखे जाते हैं:—
शिव विष्णु ईश बहु रूप तुई नभ तारा वारु सुधाकर है।
अम्बा धारानल शक्ति स्वधा स्वाहा जल पवन दिवाकर है॥
हम अंशाअंश समझते हैं सब खाक जाल से पाक रहें।
सुन लालबिहारी ललित ललन हम तो तेरे ही चाकर हैं॥१॥
कारन कारज ले न्याय कहै जोतिस मत रवि गुरु ससी कहा।
ज़ाहिद ने हक्क, हसन यूसुफ़ अरहत जैन छवि बसी कहा।
रतराज रूप रस प्रेम इश्क जानी छवि शोभा लसी कहा।
लाला हम तुमको वह जाना जो ब्रह्म तत्व त्वम असी कहा॥२॥
मुख सरद चन्द्र पर ठहर गया जानी के बुद पसीने का।
या कुन्दन कमल कली ऊपर झमकाहट रक्खा मीने का॥
देखे से होश कहाँ रहवै जो पिदर बू अली सीने का।
या लाल बदख्शाँ पर खीँचा चौका इल्मास नगीने का॥३॥
हम खूब तरह से जान गये जैसा आनंद का कंद किया।
सब रूप सील गुन तेज पुंज तेरे ही तन में बंद किया॥
तुझ हुस्न प्रभा की बाकी ले फिर विधि ने यह फरफंद किया।
चम्पकदल सोनजुही नरमिस चामीकर चपला चंद किया॥४॥
मुख सरद चन्द्र पर स्रम सीकर जगमगै नखत गन जोती से।
कै दल गुलाब पर शबनम के हैं कनके रूप उदोती से।
हीरे की कनियाँ मंद लगैं हैं सुधा, किरन के गोती से।
आया है मदन आरती को धर कनक थार में मोती से॥५॥