इनकी कुछ कविताएँ यहाँ उद्धृत की जाती हैं:—
ननँद निनारी सासु माइके सिधारी अहै रैनि अँधियारी
भरी सूझत न करु है। पीतम को गौन कविराज न सुहात
भौन दारुन बहत पौन लाग्यो मेघ झरु है॥ संग न सहेली,
बैस नवल अकेली तन परी तलबेली महा लायो मैन सरु हैं।
भई अधरात मेरो जियरा डेरात जागु जागु रे बटोही इहाँ
चोरन को डरु है॥१॥
जोहैं जहाँ सगु नंद कुमार तहाँ चली चंदमुखी सुकुमार है।
मोतिन ही को कियो गहनो सब फूलि रही जनु कुंद की डार है।
भीतर ही जु लखी सु लखी अब बाहिर जाहिर होति न दार है।
जोन्हसीजोन्हैगईमिलियोंमिलिजातज्योंदूधमेंदूधकीधारारहै॥२॥
यों कछु कीन्हीं अचानक चोट जु ओट सखीन सकी कै दुकूल है।
देह कँपै मुँह पीरी परी सो कह्यो नहिँ जो ह्वै गयो हिय सूल है॥
माँझ उरोज में आनि लग्यो अंगिरात जहीं उचक्यो भुजमूल है।
कौन है ख्याल? खेलारअनोखे! निसं कह्वै ऐसे चलैयत फूल है॥३॥
मीन की बिछुरता कठोरताई कच्छप की हिये घाय करिबे
को कोल ते उदार हैं। बिरह विदारिबे को बली नरसिह जू
सों बामन सों छली बलिदाऊ अनुहार हैं॥ द्विज सों अजीत
बलबीर बलदेव ही सों राम सों दयाल सुखदेव या विचार
हैं॥ मौनता में बौध कामकला में कलंकी चाल प्यारी के उरोज
ओज दसो अवतार हैं॥४॥
मंदर महिन्द गंधमादन हिमालय में जिन्हें चल जानिये अचल
अनुमाने ते। भारे कजरारे तैसे दीरघ दँतारे मेघ मंडल बिहंडैं
जे वै शुंडा दंड ताने ते। कीरति विशाल छितिपाल श्री अनूप
तेरे दान जो अमान कापै बनत बखाने ते। इतै कवि मुस्न जस
आखर खुलत उतै पाखर समेत पील खुलै पीलखाने ते॥५॥