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गिरिधर कविराय
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कह गिरिधर कविराय अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निशिदिन चारि रहत सबहीके दौलत॥९॥
गुन के गाहक सहसनर बिनु गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ को एक रंग काग सब भये अपावन॥
कह गिरिधर कविराय सुनो हो ठाकुर मनके।
बिनु गुन लहैं न कोय सहस नर गाहक गुनके॥१०॥
साँई सब संसार में मतलब का व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में तब लग ताकोयार॥
तबलग ताको यार यार सँगही सँग डालैं।
पैसा रहा न पास यार मुखसे नहिं बोलैं॥
कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति यार बिरला कोई साँई॥११॥
रहिये लटपट काटि दिन बरु घामें माँ सोय।
छाँह न बाकी बैठिये जो तरु जो तरु पतरो होय।
जो तरु पतरो होय एक दिन धोखा होय देहे॥
जा दिन बहै बयारि टूटि तथ जरसे जैहै॥
कह गिरिधर कविराय छाँह मोटे की गहिये।
पाता सब झरिजाय तऊ छाया में रहिये॥१२॥
साई घोड़े आछतहि गदहन पायो राज।
कौआ लीजै हाथ में दूरि कीजिए बाज॥
दूरि कीजिये बाज राज पुनि ऐसो आयो।
सिंह कीजिये कैद स्यार गजराज चढ़ायों॥
कह गिरिधर कविराय जहाँ यह बुझि बधाई।
तहाँ न कीजै भोर साँझ उठि चलिये साईं॥१३॥