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चरनदास
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सिद्ध से सुजान सुख सागर सों नियरे। सुरभी सी खुलन
सुकवि की सुमति लागी चिरिया सी जागी चिन्ता जनक के
हियरे। धनुष पै ठाढ़े राम रवि से लसत आजु भोर कैसे
नखत नरिन्द भये पियरे॥७॥
आप दरियाव पास नदियो के जाना नहीं दरियाव पास
नदी होयगी सो धावैगी। दरखत बेलि आसरे को कभी
राखत ना दरखत ही के आसरे को बेलि पावैगी मेरे। लायक
जो था कहना सो कहा मैंने रघुनाथ मेरी मति न्यावही को
गावैगी। वह मोहताज आपकी है आप उसके न आप कैसे
चलो वह आप पास आवैगो॥८॥


 

चरनदास

रन दास जी दूसर बनियाँ थे। इनका जन्म भाद्रपद शुक्ला तृतीया मंगलवार सं॰ १७६० वि॰ में राजपूताना के देहरा नामी गाँव में हुआ। इन्होंने ७६ वर्ष की अवस्था में, संवत् १८३९ में, दिल्ली में शरीर छोड़ा। इनका पहले का नाम रनजीतसिंह था। इनके पिता का नाम मुरलीधर, माता का कुंजो और गुरु का शुकदेव था। चरनदास जी ने सात वर्ष की अवस्था में घर छोड़ा। घर से ये दिल्ली चले आये और वहाँ अपने नाना के घर रहने लगे। वहीं १९ वर्ष की अवस्था में इन्हें वैराग्य हुआ। शिवसिंह सरोज में इनका जन्म संवत् १५३७ और जन्मस्थान पंडित पुर जिला फैजाबाद लिखा है; और उसी के आधार पर मिश्रबन्धुओं ने भी वैसा ही लिखा जो है