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सूदन
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मो ढिग छोड़ि न काम कछू कहि तोष यहै लिखितो विधि एतो।
तौ करतार इती करनी करि कै कलि मैं कलकीरति लेतो॥२॥
भूषण भूषित दूषण हीन प्रवीन महा रस मैं छवि छाई।
पूरी अनेक पदारथ तें जिहि में परमारथ स्वारथ पाई॥
औ डकतैं मुकतैं उलही कवि तोष अनोख भरी चतुराई।
होति सबैसुख की जनिता बनिआवति जो बनिता कविताई॥३॥


 

सूदन

सूसूदन मथुरा निवासी माथुर ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम बसंत था। ये भरतपुर के महाराज सूरजमल के आश्रय में रहा करते थे। इनके जन्म-मरण के ठीक ठीक समय का पता नहीं है। इन्होंने २३४ पृष्ठों का सुजान-चरित्र नामक एक ग्रंथ की रचना की है। उसे नागरी प्रचारिणी सभा ने प्रकाशित किया है। उसमें सन॰ १८०२ से १८१० तक सूरजमल के युद्धों का और विविध घटनाओं का वर्णन है। सूदन की कविता वीररस से पूर्ण है। प्राचीन कवियों में भूषण और लाल के पश्चात् वीररस की कविता रचने में सूदन ही सफल हुये हैं। इनका, युद्ध की तैयारी का वर्णन उत्तम है। इनकी भाषा में ब्रजभाषा और खड़ी बोली का मिश्रण है। इनकी कविता के कुछ नमूने नीचे दिये जाते हैं:—

सेलनु धकेला तें पठान मुख मैला होत केते भट भेद
हैं भजाये भुव भंग मैं। लंग के कसे तें तुरकानी सब तंग
कीनी दंग कीनी दिल्ली औ दुहाई देन बंग मैं। सूदन सराहत
सुजान किरवान गहि धायो धीर धारि बीरताई की उमंग मैं।