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कविता-कौमुदी
 

 

दास

दा का पूरा नाम भिखारीदास था। जि॰ प्रतापगढ़ के ट्योंगा गाँव में सं॰ १७५५ के लगभग इनका जन्म हुआ था। ये जाति के कायस्थ थे। इनके पिता का नाम कृपालदास और पितामह का वीरभानु था। इनके ग्रन्थों में काव्य निर्णय, छन्दोर्णव और शृंगार निर्णय, बहुत उत्तम ग्रन्थ हैं। इनकी कविता के कुछ नमूने हम नीचे उद्धृत करते हैं:—

सुजस जनावै भगतनहीं से प्रेम करै चित्त अति ऊजरे
भजत हरिनाम हैं। दीन के दुखन देखै आपनो सुखन लेखै
विप्र पापरत तन मैन मोहै धाम हैं। जग पर जाहिर है धरम
निबाहि रहे देव दरसन ते लहत बिसराम हैं। दास जू गनाए जे
असज्जन के काम हैं समुझि देखो एई सब सज्जन के काम हैं॥

धूरि चढ़ै नभ पौन प्रसङ्ग तें कीच भई जल संगति पाई।
फूल मिलै नूप पै पहुँचै कृमि कीटनि संग अनेक बिथाई॥
चन्दन संग कुदारु सुगन्ध ह्वै नीव प्रसङ्ग लहै करुआई।
दास जू देख्यो सही सब ठौरनि संगतिको गुन दोष न जाई॥

पंडित पंडित सों सुख मंडित सायर सायर के मन मानै।
संतहि संत भनंत भलौ गुनवंतनि को गुनवन्त बखानै॥
जा पहुँ जा सह हेतु नहीं कहिये सु कहा तिहिकी गति जानै।
सूर को सूर सती को सती अरु दास जती को जती पहचानै॥