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कविताव-कौमुदी
 

रङ्गभूमि नृपति अनंग आगे नृत्य करै बेसर की मोती
नृत्य कारी है॥

इनमें से चाहे जिस छन्द की पूर्त्ति पर आलम रीझे हों, परन्तु इसमें संदेह नहीँ, कि दोनों बड़े प्रेमी जीव थे। इन दोनों प्रेमियों की जितनी कविताएँ मिलती हैं, सब में बड़ा चमत्कार है। आलम और शेख के कोई ग्रन्थ नहीं मिलते। इधर उधर पुस्तकों में फुटकर छंद मिलते हैं। पाठकों के विनोदार्थ कुछ छंद हम नीचे प्रकाशित करते हैं:—

रति रन विषे जे रहे हैं पति सनमुख तिन्है
बकसीस बकसी है मैं बिहैसि कै। करन को कंकन उरोजन को चन्द्र
हार कटि माहिँ किंकिनी रही है अति लसि कै॥ सेख कहै
आदर सों आनन को दीन्हों पान नैनन में काजर बिराजै मन
बसि कै। एरे बैरी बार ये रहे हैं पीठि पाछे तातें बार बार
बाँधति हौं बार बार कसि कै॥

कैधों मोर सोर तजि गये री अनत भाजि कैधों उत
दादुर न बोलत हैं ये दई। कैधों पिक चातक वधिक काहू
मारि डारयो कैधों यक पाँति उत अंत गति ह्वै गई। आलम
कहत आली अजहूँ न आये कंत कैधों उत रीति विपरीति
विधि ने ठई। मदन महीप की दोहाई फिरिबे ते रही जूझि
गये मेघ कैधों बीजुरी सती भई॥

जा थल कीन्हें बिहार अनेकन ता थल काँकरी बैठि चुन्यो करैं।
जा रसना सों करी बहु बातन ता रसना सां चरित्र गुन्यो करैं॥
आलम जौन से कुंजन में करी केलि तहाँ अब सीस धुन्यो करैं।
नैनन में जो सदा रहते तिनकी अब कान कहानी सुन्यो करैं॥