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कालिदास त्रिवेदी
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कालिदास त्रिवेदी

कालिदास त्रिवेदी कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इनका जन्म अनुमान से सं॰ १७१० के लगभग बनपुरा गाँव (जिला कानपुर) में हुआ। इनकी पुस्तकों से इनके जन्म का कुछ पता नहीं का चलता। इनके पुत्र कवीन्द्र और पौत्र दूलह भी बड़े प्रसिद्ध कवि हुये। कालिदास औरङ्गजेब के दल में किसी राजा के साथ सं॰ १७४५ की बीजापुर-गोलकुंडा वाली लड़ाई में गये थे। इनके लिखे हुये केवल तीन ग्रन्थों का अभी तक पता चला है—बधू विनोद, कालिदास हजारा, जंजीरा। वधू विनोद नायका भेद का ग्रन्थ है। हजारा में हिन्दी के पुराने २१२ कवियों के एक ह‌जार छंद संग्रह किये गये हैं। जंजीरा में ३२ घनाक्षरी छंद बड़े अद्भुत हैं। इनके रचे हुये राधा माधव बुधमिलन विनोद नामक एक और ग्रन्थ का भी नाम सुना जाता है।

इनकी कविता के कुछ नमूने नीचे लिखे जाते हैं—

गढ़न गढ़ी से गढ़ि महल मढ़ी से मढ़ि बीजापुर ओप्यो
दलि मलि उजराई में। "कालिदास" कोप्यो बीर औलिया
अलमगीर तीर तरवारि गह्यो पुहुमी पराई में। बूँद तें निकसि
महिमंडल घमंड मची लोहू की लहरि हिमगिरि की तराई में।
गाड़ि कै सु झंडा आड़ कीन्ही बादशाह तातें डकरी चामुंडा
गोलकुण्डा की लड़ाई में॥१॥

चूमों कर कंज मंजु अमल अनूप तेरो रूप के निधान
कान्ह मो तन निहारि दे। कालिदास कहैं मेरे पास हरि हेरि
हरि माथे धरि मुकुट लकुट कर डारि दे। कुँवर कन्हैया मुख