सी करै सु मोहनै बसी करै बिरंचिहूँ यसी करै सु सौतिन
मसी करै॥१५॥
मानव बनाये देव दानव बनाये यक्ष किन्नर बनाये पशु
पक्षी नाग कारें हैं। दुरद बनाये लघु दीरघ बनाये केते सागर
उजागर बनाये नदी नारे हैं। रचना सकल लोक लोकन
बनाये ऐसी जुगुति में बेनी परवीनन के प्यारे हैं। राधे को
बनाय विधि धोयो हाथ जाम्यो रंग ताको भयो चन्द्र कर
झारे भये तारे हैं॥१६॥
बाजी के सुपीठ पै चढ़ाया पीठि आपनी दै कवि हरि-
नाथ को छोहा मान सादरै। चक्कवै दिली के जे अथक्क
अकबर सोऊ नरहरि पालकी को आपने कँधा धरै। बेनी
कवि देनी की औ न देनी की न मोको सोच नावै नैन नीचे
लखि बीरन को कादरै। राजन को दीबो कविराजन को
काज अब राजन को लाज कविराजन को आदरै॥१७॥
सबलसिंह चौहान
सबलसिंह चौहान का जन्म संवत् १७०२ के लगभग और मरण संवत् १७९२ के लगभग अनुमान किया जाता है। शिवसिंह ने इनको "इटावा के किसी गाँव का ज़मींदार" लिखा है। इन्होंने महाभारत के अठारहों पर्वों की कथा दोहे चौपाई में लिखी है। उसमें युद्धों का वर्णन अच्छा किया है। चक्रव्यूह युद्ध में अभिमन्यु के अन्तिम प्रयास की कथा का वर्णन सुनिये, ये कैसा करते हैं:—