पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२९३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३८
कविता-कौमुदी
 

 

जसवन्तसिंह

सवन्त सिंह जोधपुर के महाराज थे। महाराज गजसिंह के द्वितीय पुत्र और अमरसिंह के छोटे भाई थे। इनका जन्म सं॰ १६८२ में हुआ। ये सं॰ १६९५ में अपने पिता के स्वर्गवासी होने पर सिंहा सनासीन हुये। सं॰ १६९१ में अमरसिंह को गजसिंह ने उद्धत स्वभाव होने के कारण देश से निकाल दिया था। इसी से द्वितीय पुत्र जसवन्तसिह को राजगद्दी मिली। ये वे ही अमरसिंह हैं, जिनकी प्रशंसा में बनवारी कवि ने कविता की है। औरंगज़ेब के इतिहास से जसवन्तसिंह के जीवन का बहुत सम्बन्ध है जो इतिहास पढ़ने वालों से छिपा नहीं है। इनका देहान्त सं॰ १७३८ में, काबुल में हुआ। कहते हैं, औरंगज़ेब ने उन्हें विष दिला कर मरवा डाला था।

जसवन्तसिंह भाषा के बड़े मर्मज्ञ कवि थे। इन्होंने इन ग्रन्थों की रचना की है—भाषा भूषण, अपरोक्ष सिद्धान्त, अनुभव प्रकाश, आनन्द विलास, सिद्धान्त बोध, सिद्धान्त सार, प्रबोध चन्द्रोदय नाटक। भाषा भूषण के सिवाय इनके शेष ग्रन्थ वेदान्त सम्बन्धी हैं। भाषा भूषण १६१ दोहों का अलंकार का ग्रन्थ है।

जसवन्तसिंह की कविता के कुछ नमूने नीचे दिये जाते:—

मुख शशि वा शशि सों अधिक उदित जोति दिन राति।
सागर तें उपजी न यह कमला अपर सोहाति॥१॥
नैन कमल ये ऐन हैं और कमल केहि काम।
गमन गरत नीकी लगै कनक लता यह बाम॥२॥