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कविता-कौमुदी
 

प्रीतम को मन भावती मिलत प्रेम उत्कण्ठ।
बाँहि न छूटै कंदते नाहि न छूटै कण्ठ॥३०॥


 

कुलपति मिश्र

कुलपति मिश्र आगरे के रहने वाले चतुर्वेदी ब्राह्मण थे। चतुर्वेदी ब्राह्मण में मिश्र शुक्ल आदि सभी आस्पद होते हैं। इनके पिता का नाम परशुराम मिश्र था। इनका जन्म अनुमान से संवत् १६७७ विक्रम में हुआ। इनका रखा हुआ एक ग्रंथ "रस रहस्य" मिलता है, वह सं १७२७ में समाप्त हुआ था। इनके मरण-काल का कुछ पता नहीं चलता।

कुलपति मिश्र संस्कृत के बड़े विद्वान् थे। मम्मट के आधार पर रसरहस्य में इन्होंने काव्य के कई अंगों की विद्वता पूर्ण आलोचना की है। काव्य के दोष, गुण, अलंकार, रस आदि का वर्णन रसरहस्य में अच्छा है। यह ग्रंथ इंडियन प्रेस, प्रयाग से प्रकाशित हो चुका है, परंतु बहुत अशुद्ध है। इसके सिवाय द्रोण पर्व, गुण रस रहस्य, संग्रह सार, युक्ति तरंगिणी, और नखशिख नामक ग्रंथ भी इनके रचे हुये बतलाये जाते हैं; परंतु अभी तक कहीं से वे प्रकाशित नहीं हुये।

ये जयपुर के महाराजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह के यहाँ रहते थे। रसरहस्य में अलंकारों के उदाहरण में रामसिंह की प्रशंसा के ही छंद अधिक हैं। कुलपति ने अपनी कविता में प्राकृत मिश्रित और उर्दू मिश्रित हिन्दी भाषा का प्रयोग किया है।