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भूषण
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जियरे। तमकते लाल मुख सिवा कौ निरखि भये स्याह
मुख नौरँग सिपाह मुख पियरे॥२९॥

देवल गिरवाते फिरावते निसान अलि ऐसे डूबे राव
राने सबे गए लब की। गौरा गनपति आप औरन को
देत ताप आपके मकान सब मार गये दबकी। पीरा
पयगम्बरा दिगम्बरा दिखाई देत सिद्ध की सिधाई गई
रही बात रबकी। कासिहु ने कला जाती मथुरा मसीद
होती सिवा जी न हो तो तौ सुनति होत सब की॥३०॥

ऊँचे घोर मन्दिर के अन्दर रहनवारी ऊँचे घोर मन्दर
अन्दर रहाती हैं। कन्द मूल भोग करैं कन्द मूल भोग करैं तीन
बेर खाती सो तो तीन बेर खाती हैं। भूषन सिथिल अंग भूखन
सिथिल अंग बिजन डुलाती ते वे विजन डुलाती हैं। भूषन
भनत सिवराज वीर तेरे त्रास नगन जड़ाती ते वै नगन जड़ाती
हैं॥३१॥

सोधे को आधार किसमिस जिनको अहार चारि को सो
अंक लंक चन्द सरमाती हैं। ऐसी अरि नारी सिवराज बीर तेरे
त्रास पायन में छाले परे कन्द मूल खाती हैं। ग्रीषम तपनि एती
तपती न सुनी कान कंज कैसी कली बिनु पानी मुरझाती
हैं। तोरि बोरि आछे से पिछौरा सो निचोरि मुख कहैं "अब
कहाँ पानी मुकतौ मैं पाती है"॥३२॥

डाढ़ी के रखैयन की डाढ़ी सी रहति छाती बाढ़ी मरजाद
जल हद्द हिन्दुवाने की। कढ़ि गई रैयति के मन की कलक
सब मिट गई उसक तमाम तुरकाने की। भूषन भनत दिल्ली
पति दिल धकधका सुनि सुनि धाक सिवराज मरदाने की।
मोटी भई चंडी बिनु चोटी के चबाय मुंड खोटी भई सम्पति
चकत्ता के धराने की॥३३॥