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भूषण
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लोमस की ऐसी आयु होय कौन हू उपाय तापर
कवच जो करनवारो धरिये। ताहू पर हूजिये सहसबाहु,
तापर सहसगुनो साहस जो भीमहु ते करिये॥ भूषन कहैं।
यो अवरंगजू सों उमराव नाहक कहौ तौ जाय दच्छिन में
मरिये। चलै न कछू इलाज भेजियत बेही काज ऐसो होय
साज तौ सिवासों जाय लरिये॥१२॥

ब्रह्म के आनन तें निकसे तें अत्यंत पुनीत तिहूँ पुर मानी।
राम युधिष्ठिर के बरने बलमाकहु व्यास के अंग सोहानी॥
भूषन यों कलि के कविराजन राजन के गुन गाय नसानी।
पुन्य चरित्र सिवा सरजै सर न्हाय पवित्र भई पुनि बानी॥१३॥

दान समै द्विज देखि मेरुहू कुबेरह की सम्पत्ति लुटाइबे
को हियो ललकत है। साहि के सपूत सिव साहि के बदन
पर सिव की कथान में सनेह झलकत है॥ भूषन जहान
हिन्दुवान के उचारिबे को तुरकान मारिबे को बीर बलकत
हैं। साहिन सो लरिबे की चरचा चलत आनि सरजा के
गगन उछाह छलकत है॥१४॥

काहू के कहे सुने तें जाही ओर चाहैं ताही ओर इकटक
घरी चारिक चहत हैं। कहे ते कहत बात कहे ते पियत खात
भूषन भनत ऊँची साँसन जहत है॥ पौड़े हैं तो पौढ़े, बैठे
बैठे, खरे खरे, हमको है, कहा करत, यों ज्ञान न गहत हैं।
साहि के सपूत सिव साहि तब बैर इमि साहि सब रातो
दिन सोचत रहत हैं॥१५॥

आजु यहि समै। महाराज शिवराज तुही जगदेव जनक
जजाति अम्बरीक सों। भूषन भनत तेरे दान जल जलधि मैं
गुनिन को दारिद गयो बहि खरीक सो॥ ॥ चंद कर किंजलक,
चाँदनी पराग, उड़ वृन्द मकरन्द बुन्द पुंज के सरीक सों।