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कविता-कौमुदी
 

सीस मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल।
यहि बानिक मो मन बसो सदा बिहारीलाल॥८६॥


 

चिन्तामणि

चिन्तामणि महाकवि भूषण के बड़े भाई थे। इनका जन्म-काल सं॰ १६६६ के लगभग अनुमान किया जाता है। ठाकुर शिवसिंह ने इनके बनाये पाँच ग्रंथ लिखे हैं—छन्द विचार, काव्य विवेक, कचि कुल कल्पतरु, काव्य प्रकाश, और रामायण। ये कुछ दिनों तक नागपुर के सूर्यवंशी भोंसला मकरंदशाह के यहाँ रहे। राजा महाराजाओं के यहाँ इनका अच्छा मान था।

इनकी कविता के कुछ नमूने देखिये:—

चोखी चरचा ज्ञान की आछी मन की जीति।
संगति सज्जन की भली नीकी हरि की प्रीति॥१॥

सरद तें जल की ज्यों दिन तें कमल की ज्यों, धन तें
ज्यों थलकी निपट सरसाई है। घन तें सावन की ज्यों आप
तें रतन की ज्यों, गुन तें सुजन की ज्यों परम सुहाई है॥
चिंतामनि कहै आछे अच्छरन छंद की ज्यों, निसागम चन्द्र
की ज्यों द्वग सुखदाई है। नग तें ज्यों कंचन बसंत तें ज्यों वन
की, यों जोबन तें तनकी निकाई अधिकाई है॥२॥
कोटि विलास कटाक्ष कलोल बढ़ावै हुलास न प्रीतम हीतर।
यों मनि यामे अनूपम रूप जो मैनका मैन बधू कहि हीतर॥
सुन्दरि सारी सुफेद ये सोहत यों छबि ऊँचे उरोजन की तर।
जोवन मत्त गयंद के कुंभ लसै जनु गंग तरंगनि भीतर॥३॥