पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

( २४ ) करते हैं, जिनका अर्थ एक है परन्तु विद्वानों और ग्रामीणों के उच्चारण में अंतर है । जैसे- उच्चारण-भेद शुद्ध शब्द शुद्ध शब्द भूमि भुई आकाश पानीय पानी सूर्य शरीर सरोर श्वास उच्चारण-भेद अकास आकास सूरज साँस faarti और ग्रामीणों का यह उच्चारण-भेद नया नहीं है, रामायण के समय के भी शिष्ट समाज में बीली जाने वाली भाषा भिन्न थी, और सर्वसाधारण बोलचाल की भाषा भिन्न । बाल्मीकि रामायण सुन्दर काण्ड, सर्ग ३०, श्लोक १७, १६ में अशोकवृक्ष पर हनुमान जी चिंता करते हैं अहं ह्यतितनुश्चैव वानरश्च विशेषतः । वाचं चोदाहरिष्यामि मानुषीमिह संस्कृताम् ॥ यदि वाचं प्रदास्यामि द्विजातिरिव संस्कृताम् । रावणं मन्यमाना मां सीता भीता भविष्यति ॥ अवश्यमेव वक्तव्यं मानुषं वाक्यमर्थवत् । अर्थात् मैं तो लघु शरीरी और वानर हूँ । पर यहाँ मनुष्यों harit संस्कृत बोलूंगा । यदि द्विजाति के समान संस्कृत बलूँगा तो सीता मुझे रावण समझ कर डर जायगी । इसलिये मुझे अर्थयुक्त साधारण मनुष्यों की बोलचाल की भाषा बोलनी चाहिये । इससे प्रकट होता है कि रामायण के समय में साधारण मनुष्यों की भाषा देववाणी संस्कृत से क्षत्रिय, वैश्य संस्कृत बोलते थे और शूद्र भिन्न थी । ब्राह्मण, संस्कृत शब्दों के अशुद्ध उच्चारण वाली कोई अन्य भाषा । अशोक के शिला लेखों