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बिहारीलाल
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सतसई में कुल ७१९ दोहे हैं। एक एक दोहे में बिहारीलाल ने इतना चमत्कार भर दिया है कि उसमें कवियों की कल्पना-शक्ति को ख़ासी झलक दिखाई पड़ती है। यों तो बिहारीलाल के सभी दोहे अशर्फियों के मोल के हैं, परन्तु स्थानाभाव से हम उन सब को प्रकाशित करने में असमर्थ हैं। उनमें से कुछ चुने हुए दोहे नीचे लिखे जाते हैं:—

मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोय।
जा तनुकी झाँई परे श्याम हरित द्युति होय॥१॥
मकराकृत गोपाल के कुडल सोहत कान।
धस्यो मनो हिय घर समर ड्योढ़ी लसत निसान॥२॥
अधर धरत हरि के परत ओठ दीठ पट जोति।
हरित बाँस की बाँसुरी इन्द्र धनुष रंग होति॥३॥
अपने अँग के जानिके यौवन नृपति प्रवीन।
स्तन मन नयन नितम्ब को बड़ो इजाफा कीन॥४॥
बिहुँसि बुलाय बिलोकि उत प्रौढ़ तिया रस भूमि।
पुलकि पसीजति पूतको पिय चूम्यो मुख चूमि॥५॥
कंजनयनि। मञ्जन किये बैठी ब्यौरति बार।
कच अँगुरिन बिच दीठि दै चितवति नन्दकुमार॥६॥
पहुँचति डटि रन सुमट लौं रोकि सके सब नाहिं।
लाखनहूँ की भीरमें आँखि वहीं चलि जाहि॥७॥
छिनकु उधारति छिन छुवति राखति छिनकु छिपाय।
सब दिन पिय खंडित अधर दर्पन देखति जाय॥८॥
आह भरी अति रिस भरी विरह भरी सब बात।
कोरि सँदेसे दुहुन के चले पौरि लौं जात॥६॥
युवति जोन्ह में मिल गई नैकु न होति लखाइ।
सौंधे के डोरे लगी अली चली सँग जाइ॥१०॥