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पृथ्वीराज और चम्पादे
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राणा प्रताप सिर पर भाला सहेगा, क्योंकि बराबर वाले का यश विष के समान होता है। हे भट पृथ्वीराज, आप तुरुफ से बातों के युद्ध में विजय पावें।

अकबर के साथ विवाद होने का पता जथ पृथ्वीराज की रानी को लगा, तब उसने यह दोहा लिखकर पृथ्वीराज के पास भेजा—

पति जिद की पनसाहसूँ यहै सुखी मैं आज।
कहाँ पातल अकबर कहाँ करियों बड़ा अकाज॥

हे प्राणपति! मैंने आज यह सुना कि आपने महाराणा के सम्बंध में अकबर से विवाद किया है। कहाँ अकबर और कहाँ प्रताप! आपने बड़ा अनर्थ किया।

इसके उत्तर में पृथ्वीराज ने यह कवित्त लिख भेजा:—

जब तें सुनेहैं बैन तब तें न मोको चैन
पाती पढ़ि नैक सो बिलंब न लगावेगो।
लेकै जमदूत से समस्त राजपूत आज
आगरे में आठों याम ऊधम मचावेगो॥
कहै पृथिराज प्रिया नैक उर धीर धरो
चिरंजीवी राना श्री मलेच्छन भगावेगो।
मन को मरद मानी प्रबल प्रतापसिंह
बब्बर ज्यों तड़प अकब्बर पै आवेगो॥

अर्थ स्पष्ट है।

पृथ्वीराज ने महाराणा प्रताप के विषय में और भी बहुत से पद्य रचे थे, उनमें से एक गीत नीचे दिया जाता है:—

गीत

नर लेथ निमाणा निलजी नारी अकबर गाहक बट अबट।
चौहटै तिण जायर चीतोड़ो बेचै किम रजपूत बट॥