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कविता-कौमूदी
 

 

पृथ्वीराज और चम्पादे

पृथ्वीराज बीकानेर के राजा राजसिंह के भाई थे, और अकबर के दरबार में रहा करते थे। कहा जाता है कि इन्हीं की रानी किरणमयी अत्यंत सुन्दरी थी, जिसे नवरोज के अवसर पर अकबर ने एक दूती के द्वारा बहका कर एक कोठरी में बन्द कर दिया, और स्वयं उस कोठरी में घुस कर वह बलात्कार करना चाहता था। पर किरणमयी ने उस भारत के शाहंशाह को उठा कर पृथ्वी पर दे मारा और कटार निकाल कर उसके गले पर रख दी। अकबर ने जब भाता कह कर क्षमा माँगी तब कहीं उसके प्राण बचे।

प्रसिद्ध देशभक्त महाराणा प्रतापसिंह जब अकबर से विद्रोह कर के राज्य छोड़ कर वनों में घूमते थे, तब एक दिन उनकी कन्या के हाथ से एक जङ्गली बिलाव घास की रोटी, जो वह खा रही थी, छीन कर ले गया। कन्या रोने लगी। इस घटना का राणाजी के हृदय पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने अकबर के पास संधि का प्रस्ताव लिख भेजा।

टाड साहब लिखते हैं—"प्रताप का पत्र पाकर अकबर बहुत ही प्रसन्न हुआ। उसने आज्ञा दी कि राज्य भर में नाच गान हो, और आनन्द मनाया जावे। मारे हर्ष के उसने वह पत्र पृथ्वीराज को दिखलाया। पृथ्वीराज बीकानेर-नरेश राजसिंह के छोटे भाई थे, जो दुर्भाग्य से मुगलों के यहाँ कैद थे। वे बड़े वीर साहसी और स्वदेश प्रेमी थे। वीर ही नहीं बल्कि वे एक अच्छ कवि भी थे। वे अपनी कवित्व-शक्ति से मनुष्य का मन मोह सकते थे, और आवश्यकता पड़ने पर