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रसखान
१७९
 

पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयो कर छत्र पुरन्दर धारन।
जौखगहौंतौबसेरो करौंमिलि कालिंदी कूलकदम्ब कीडारन॥१॥
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौनिधि को सुखनन्द की गायचराइ बिसारौं॥
रसखानि कबौं इन आँखिन सों ब्रज के बन बागतड़ाग निहारौं।
कोटिनहूँ कल धौत के धाम करील के कुञ्जन ऊपर वारौं॥२॥
आयो हुतो नियरे रसखानि कहा कहूँ तू न गई वहि ठैंया।
या व्रज में सिगरी बनिता सब चारति प्राननि लेत बलैया॥
कोऊ न काहू की कानि करै कछु चेटक सो जु करयो जदुरैया।
गाइगो तान जमाइगो नेह रिझाइगो प्रान राइगो गैया॥३॥
सोहत हैं चंदवा सिर मौर के जैसियै सुन्दर पाग कसी है।
तैसियै गोरज भाल बिराजति जैसी हिये बनमाल लसी है॥
रसखानिविलोकतबौरीभई दूगमूँ दिकै ग्वालिपुकारि हँसी है।
खोलिरी घूँघट खोलौं कहा वह मूरति नैनन माँझबसी है॥४॥
सेस गनेस महेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावै।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड अछेद अभेद सुवेद बतावैं॥
जाहि हिये लखि आनँद ह्वै जड़ मूढ़ हिये रसखानि कहावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥५॥
तेरी गलीन में जा दिन तें निकसे मन मोहन गोधन गावत।
ये ब्रजलोग सों कौनसी बात चलाइ कै जो नहिँ नैन चलावत॥
वे रसखानि जो रोझिहैं नेकुतैरीझि कै क्यों बनवारिरिझावत‌।
बावरीजो पैकलङ्क लग्यो तौनिसङ्क ह्वै क्यों नहीं अंकलगावत॥६॥
दानी भये नए माँगत दान हो जाति हैं कंस तौ बंधन जै हो।
टूटे छरा बछरादिक गोधन जो धन है सो सबै धन दैहो॥
सैकत हो बन में रसखानि चलावत हाथ घनो दुःख पैहो।
जैहै जो भूषन काहू तियाको तो मोल छलाके लला न बिकैहौ॥७॥