पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/२३२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
रसखान
१७७
 

बाँधियत केशौदास, मारिबे के नाते तौ दरिद्र मारियतु है।
राजा रामचन्द्र जूके नाम जग जीतियतु, हारिबे के नाते आन
जन्म हारियतु है॥

२४

कुटिल कटाक्ष कठोर कुच एकै दुःख अदेय।
द्विस्वभाव अश्लेष में ब्राह्मण जाति अजेय॥


 

रसखान

सखान दिल्ली के पठान थे। इनका जन्म सं॰ १६४० और मरण १६८५ के लगभग कहा जाता है।

युवावस्था में ये एक बनिये के लड़के पर आसक्त थे। रात दिन उसके साथ फिरा करते थे, यहाँ तक कि उसका जूठा भी खाते थे। लोग इनकी हँसी उड़ाते थे, परन्तु ये किसी की परवाह न करते थे। एकबार चार वैष्णव आपस में बातचीत करते समय कहते थे कि ईश्वर में ऐसा ध्यान लगाना चाहिये, जैसा रसखान ने बनिये के लड़के में लगाया है। रसखान ने इसे सुन लिया। ये वैष्णवों से मिले। वैष्णवों ने इनके सामने ही कृष्ण का गुण कीर्त्तन किया। उसी समय से ये कृष्ण के उपासक हो गये। मुसलमान होने पर भी गोस्वामी बिट्ठल नाथ जी ने इनको अपना शिष्य कर लिया। और इनकी गिनती गोसाई जी के २५२ मुख्य शिष्यों में होने लगी। २५२

वैष्णवों की वार्ता में इनका भी चरित्र लिखा है।

१२