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केशवदास
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ये संस्कृत के भारी पंडित थे। इनकी कविता बहुत गूढ़ होती थी। इसी से प्रसिद्ध देव कवि ने इन्हे "कठिन काव्य का प्रेत" कहा है। और इनकी कविता के विषय में यह भी प्रसिद्ध है कि "कवि का दीन न चहै बिदाई। पूछे केशव की कविताई"।

इनके रचे हुये आठ ग्रंथ कहे जाते हैं। परंतु उनमें से चार बहुत प्रसिद्ध हैं—रामचन्द्रिका, कविप्रिया, रसिकप्रिया और विज्ञान गीता। लोग कहते हैं कि रामचन्द्रिका इन्होंने तुलसी दास जी के कहने से लिखी। रामचन्द्रिका महाकाव्य है। कविप्रिया अलंकार प्रधान ग्रंथ है, यह प्रवीणराय वेश्या के लिये लिखा गया था। प्रवीणराय काव्यकला में इनकी शिष्या थी। रसिकप्रिया शृंगार-प्रधान ग्रन्थ है, इसमें रसों का वर्णन है। विज्ञान गीता एक साधारण ग्रंथ है।

केशवदास महाकवि थे, इसमें संदेह नहीं। इनकी कोई कोई कविता अन्य कवियों की कविता की तरह सुनते ही समझ में नहीं आ जाती। उसके लिये कुछ विचार की आवश्यकता पड़ती है। परंतु जितना ही उसे अधिक विचारिये, उतनी ही मिठास भी बढ़ती जाती है।

केशवदास रसिक भी एक ही थे। वृद्धावस्था में इन्होंने केशों की सफ़ेदी देख कर कहा—

केशव केसनि अस करी जस अरिहूँ न कराहिँ।
चंद्रबदनि मृग लोचनी बाबा कहि कहि जाहिँ॥

इससे प्रकट होता है कि वृद्ध होने पर भी इनका मन वृद्ध नहीं हुआ था।

इनकी कविता के कुछ नमूने हम यहाँ उद्धृत करते हैं:—