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रहीम
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जे गरीब सों हित करें धनि रहीम वे लोग।
कहा सुदामा बापुरो कृष्ण मिताई योग॥४५॥
जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग॥४६॥
यह न रहीम सराहिये देन लेन की प्रीति।
प्रानन बाजी राखिये हारि होय कै जीता॥४७॥
आप न काहू काम के डार पात फल फूल।
औरन को रोकत फिरैं रहिमन पेड़ बबूल॥४८॥
रहिमन सूधी चाल सों प्यादा होत बज़ीर।
फरज़ी मीर न हो सकै टेढ़े की तासीर॥४९॥
बड़े पेटके भरन में है रहीम दुःख बाढ़ि।
यातें हाथी हहरि के दये दाँत द्वै काढ़ि॥५०॥
यों रहीम सुख होत है बढ़त देखि निज गोत।
ज्यों बड़री अँखिया निरखि आँखिन को सुख होत॥५१॥
ओछो काम बड़े करैं तौ न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमन्त को गिरिधर कहै न कोय॥५२॥
जो बड़ेन को लघु कहौ नहिं रहीम घटि जाहिं।
गिरिधर मुरलीधर कहे कछु दुःख मानत नाहिं॥५३॥
शशि सकोच साहस सलिल मान सनेह रहीम।
बढ़त बढ़त बढ़ि जात है घटत घटत घटि सीम॥५४॥
यह रहीम निज संगले जनमत जगत न कोय।
बैर प्रीति अभ्यास यश होत होत ही होय॥५५॥
बड़े दीन को दुःख सुने लेत दया उर आनि।
हरि हाथी सों कब हुती कहु रहीम पहिचानि॥५६॥
रहिमन राम न उर धरै रहत विषय लपिटाय।
पशु खर खात सवाद सों गुर गुलियाये खाय॥५७॥

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