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रहीम
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दादुर मोर किसान मन लग्यो रहै घन माहिं।
पै रहीम चातक रटनि सरबर को कोउ नाहिं॥१९॥
अमर बेलि बिन मूल की प्रतिपालत है ताहि।
रहिमन ऐसे प्रभुहिं तजि खोजत फिरिये काहि॥२०॥
रहिमन अत्ति न कीजिये गहि रहिये निज कानि।
सहिजन अति फूले तऊ डार पात की हानि॥२१॥
सरवर के खग एक से बाढ़त प्रीति न धीम।
पै मराल को मानसर एकै ठौर रहीम॥२२॥
कहु रहीम केतिक रही केती गई बिहाय।
माया ममता मोह परि अंत चले पछिताय॥२३॥
जो रहीम करियो हुतो ब्रज को यही हवाल।
तौ कत मातहि दुःख दियो गिरिवर धर गोपाल॥२४॥
दीरघ दोहा अर्थ के आखर थोरे आहि।
ज्यों रहीम नट कुंडली सिमिटकूदि कढ़ि जाहिं॥२५॥
जे रहीम विधि बड़ किए को कहि दूषण काढ़ि।
चन्द्र दूबरो कृबरो तऊ नखत तैं बाढ़ि॥२६॥
रहिमन याचकता गहे बड़े छोट ह्वै जात।
नारायण हूँ को भयो बावन आँगुर गाय॥२७॥
ए रहीम घर घर फिरैं माँगिं मधुकरी खाहिं।
यारौ यारी छोड़ि भयो फिर दो अब रहीम वे नाहिं॥२८॥
हरि रहीम ऐसी करी ज्यों कमान सर पूर।
खैंच आपनी ओर को डार दियो पुनि दूर॥२९॥
संतत संपति जानके सबको सब कुछ देह।
दीनबन्धु बिन दीन की को रहीम सुधि लेइ॥३०॥
समय दशा कुल देखि के लोग करत सनमान।
रहिमन दीन अनाथ को तुम बिन को भगवान॥३१॥