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दादू दयाल
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मैं, तैं, मेरी, यहु मत नाहीँ निरबैरी निरविकारा।
पूरण सबै देखि आपा पर निरालंभ निरधारा॥
काहू के संगी मोह न ममिता सङ्गी सिरजनहारा।
मन ही मनसुँ समझि सयाना आनँद एक अपारा॥
काम कलपना कदे न कीजे पूरण ब्रह्म पियारा।
इहि पँथ पहुँचि पार गहि दादू सो तत सहजि सँभारा॥२॥
आव रे सजणाँ आव, सिर पर घरि पाँव।
जानी मैंडा जिद असाढ़े।
तू रावैं दा राव वे सजणाँ आव श।
इत्थाँ उत्थाँ जित्थाँ कित्थाँ, हैं। जीवाँ तो नाल वे।
मीयाँ मैंडा आव असाड़े।
तू लालों सिर लाल वे सजणाँ आय॥
तन भी डेवाँ मन भी डेवाँ, डेवाँ प्यंड पराण वे।
सच्चा साईं मिलि इत्थाईं।
जिन्दा कराँ कुरवाण वे सजणाँ आव।
तूँ पाकौं सिर पाक वे सजणाँ तू खूबौ सिर खूब।
दादू भावै सजणाँ आवै।
तू मीठा महबूब वे सजणाँ आव॥३॥

(पंजाबी भाषा)

म्हारा रे ह्वाला ने काजे रिदै जोवा ने हूँ ध्यान धरूँ।
आकुल थाये प्राण म्हारा कोने कही पर करूँ॥
सँभालो आवे रे ह्वाला ह्वोला एहों जोइ ठरुँ।
साथी जी साथै थइनि पेली तीरे पार तरुँ॥
पीव पाखे दिन दुहेला जाये घड़ी बरसाँ सौं केम भरूँ।
दादू रे जन हरि गुण गाताँ पूरण स्वामी ते वरूँ॥४॥

(गुजराती भाषा)

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