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कविता-कौमुदी
 

}}धुतारो॥ साहब सूम अकार तुरंग किसान कठोर दिवान
नकारों॥ ब्रह्म भनै सुन शाह अकब्बर बारहो बाँधि समुद्र में डारो॥४॥


 


गंग

गं बड़े प्रतिभाशाली और अकबर के दरबारी कवि थे। अल रहीम खानखाना इनको बहुत चाहते थे थे। गंग के जन्म और मरण की तिथि का ठीक पता नहीं चलता। परन्तु अनुमान से यह माना जा सकता है कि इनकी और रहीम की अवस्था में बहुत कम अन्तर रहा होगा। रहीम का जन्म सं॰ १६१० में और मृत्यु १६८२ वि॰ में हुई। अतएव गंग का भी जन्मकाल १६१० के आसही पास होगा।

गंग बड़े ही धुरंधर कवि थे। यद्यपि इनका कोई ग्रन्थ नहीं मिलता, परन्तु जो कुछ फुटकर छन्द मिलते हैं उनसे इनकी उत्कृष्ट प्रतिभा का परिचय मिलता है।

इनका एक छप्पै सुनकर अब्दुर्रहीम खानखाना ने इनको ३६ लाख रुपये दिये थे। वह छप्पै यह हैं।:—

चकित भँवर रहि गयौ गमन नहिं करत कमलवन।
अहि फनि मनि नहिं लेत तेज नहिं बहत पवन घन॥
इस मानसर तज्यो चक्क चक्की न मिलै अति।
बहु सुन्दरि पद्मिनी पुरुष न चहैं न करैं रति॥
खलभलित सेस कवि गंग भनि अमित तेज रवि रथ खस्यो।
खानान खान बैरम सुवन जि दिन क्रोध करि तँग कस्यो॥

हम इनके कुछ छन्द नीचे लिखते हैं:—