अब तौ बात फैल पड़ी जाणे सब कोई।
मीरा राम लगण लागी होणी होय सो होई॥८॥
मीरा मगन भईं हरि के गुण गाय॥
साँप पिटारा राणा भेज्या मीरा हाथ दियो जाय॥
न्हाय धोय जब देखण लागी सालिगराम गई पाय॥
जहर का प्याला राणा भेज्या अमृत दीन्ह बनाय।
न्हाय धोय जब पीवण लागी हो अमर अँचाय॥
सुल सेज राणा ने भेजी दीज्यो मीरा सुलाय।
साँझ भईं मीरा सोवण लागी मानो फूल बिछाय॥
मीरा के प्रभु सदा सहाई राखे विधन हटाय।
भजन भाव में मस्त डोलती गिरधर पै बलि जाय॥९॥
मलिक मुहम्मद जायसी
मलिक मुहम्मद जायसी का असली नाम मुहम्मद था। मलिक इनकी उपाधि थी। और जायस में रहने के कारण लोग इनको जायसी कहते थे। जायस रायबरेली जिले में एक बड़ा क़सबा और रेल का स्टेशन है। जायसी के जन्म और मरण की तिथि का ठीक ठीक पता नहीं चलता। इनकी कब्र अभी तक अमेठी के महल के सामने बनी हुई है।
जायसी ने दो पुस्तकें पद्य में लिखीं, एक पद्मावत और दूसरी अखरावट। पद्मावत में रामी पद्मावती की कहानी बड़ी कुशलता से लिखी गई हैं। यद्यपि उसकी भाषा जायस के आस पास की देहाती है, परंतु उसमें रूपक, उत्प्रेक्षा और उपमा आदि का बहुत सुन्दर समावेश हुआ है। सारी