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कविता-कौमुदी
 

जागिये कृपानिधान जानिराय रामचंद्र
जननि कहै बारबार भोर भयो प्यारे।
राजिव लोचन बिसाल प्रीति वापिका मराल
ललित बदनक मल उपर मदन कोटि वारे॥
अरुनउदित विगत सर्वरी ससांक किरिनिहीन
दीन दीप ज्योति मलिन दुति समूह तारे।
मनहु ज्ञान घन प्रकाश बीते सब भौबिलास
आस त्राल तिमिरतोम तरनि तेज जारे॥
बोलत खगनिकरमुखर मधुर करि प्रतीतसुनहु
श्रवन प्रान जीवन धन मेरे तुम वारे।
मनहु बेद बंदी मुनिवृंद सूत मागधादि
विरुद बदत जय जय जय जयति कैटभारे॥
सुनत बचन प्रिय रसाल जागे अतिसय दयाल
भागे जंजाल विपुल दुःख कदंब टारे।
तुलसिदास अति अनंद देख के मुखारविंद
छूटे भ्रम फंद परम मंद द्वंद भारे॥


जननी निरखत बाल धनुहिंआँ।

बार बार उर नयननि लावति प्रभुजुकी ललित पनहिआँ॥
कबहुँ प्रथम ज्यों जाइ जगावति कहि प्रिय बच्चन सकारे।
उठहु तात बलि मातु बदन पर अनुज सखा सब द्वारे॥
कबहुँ कहत बड़ वार भई ज्यों जाहु भूप पै भैया।
बन्धु बोलि जेइयै जो भावै गई नेछावरि मैया॥
कबहुँ समुझि वन गमन राम को रहि चकि चित्र लिखीसी।
तुलसिदास या समय कहेते लागति प्रीति सिखीसी॥