यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ४ ]

उस समय के कवियों में कविवंश और राजवंश निरूपण की प्रथा प्रचलित थी। उदाहरण के लिए केशवदास का नाम लिया जा सकता है। परिणाम यह हुआ कि गोस्वामीजी की जीवनी का अधिकांश सन्दिग्ध अवस्था में है। कवितावली में जोवन-सम्बन्धी कुछ बातों का उल्लेख है। निनलिखित छन्दों में ऐसा उल्लेख पाया जाता है- पातक पीन, कुदारिद दीन, मलीन धरै कथरी करवा है। लोक कहै विधिहू न लिख्यो, सपनेहू नहीं अपने बरवा है। राम को किंकर सो सुलसी समुझेहि भला कहियो न रवा है। ऐसे को ऐसो भयो कबहूँ न भजे बिनु वानर के चरवाहै ॥ १॥ मातु पिता जग जाय तज्यो, बिधिह न लिखी कछु भाल भलाई । नीच, निरादर भाजन, कादर, कूकर टुक्रन लागि ललाई ॥ राम-सुभाउ सुन्यो तुलसी, प्रभु से कह्यो धारक पेट खलाई। स्वारथ को परमारथ को रघुनाथ सो साहम खोरि न लाई ॥ २ ॥ पाप हरे, परिसाप हरे, तन पूजि भी हीसल सीतलताई। चार ते सँवारि के पहार हू ते भारी कियो, गारो भयो पंच में पुनीत पच्छ पाइकै । हो तो जैसो तब तैसो अब, अधमाई के के पेट भरौ राम रावरोई गुन गाइकै ॥ ४ ॥ अपत, स्तार, अपकार. को अगार जग, जाकी छाँह छुए सहमत व्याध बाधको । पातक पुहुमि पालिबे को सहसानन सो, कानन कपट को, पयोधि अपराध को ॥ ५ ॥ तुलसी से बाम को भी दाहिनी दयानिधान, जाति के, सुजाति के, कुजाति के, पेटागि बस, खाए हूँक सब के भिदित बात दुनी सो। राम नाम को प्रभाव पाड, महिमा प्रताप, तुलसी से जग मानियत महामुनी सो ॥६॥