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कवितावली


बात को सुनकर मन्त्रियों ने सिर धुने और वे रावण से कहने लगे कि यह ईश्वर के टेढ़े होने का विकार है।

शब्दार्थ—युगपट= २×६= १२। सर्पी= घी।

[७३ ]


“पावक, पवन, पानी, भानु, हिमवान, जम,
काल, लोकपाल मेरे डर डावाँडोल हैं।
साहिब महेस सदा, संकित रमेस मोहि,
महातप-साहस बिरंचि लीन्हें* मोल हैं॥
तुलसी तिलोक आजु दूजो न बिराजै राजा,
बाजे बाजे राजनि के बेटा बेटी ओल† हैं।
को है ईस नाम?‡ को जो बाम होत मोहू सो को§?
मालवान! रावरे के बावरे से बोल हैं”॥

अर्थ—अग्नि, वायु, पानी, सूर्य, चन्द्रमा, यम, काल, दिक्पाल सब मेरे डर से डरते हैं। महादेवजी मेरे प्रभु हैं, विष्णु सदा मुझसे डरते रहते हैं, और तप करके साहस करके मैंने ब्रह्मा को मोल ले लिया है (जो वर चाहा उनसे माँग लिया)। तुलसी तीनों लोकों में कोई दूसरा आज राज्य नहीं है; बाजे-बाजे राजाओं के बेटी-बेटा ओल (जमानत) में हैं। वामदेव नामी ईश (देवता) कौन हैं जो मुझसे भी टेढ़े होते हैं अर्थात् मुझसे वाम होते वामदेव का नाम ईश न रहेगा, उनका प्रभुत्व जाता रहेगा। हे मालवान! तेरी बातें तो बावोंलों की सी हैं।

शब्दार्थ—ओल= कर के बदले में हैं।

[७४]


“भूमि भूमिपाल, ब्यालपालक पताल,
नाकपाल लोकपाल जेते सुभट समाज हैं।



*पाठान्तर—लिये।
†पाठान्तर—बोल।
‡पाठान्तर—बाम।
§पाठान्तर—सन ।