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भूमिका
तुलसीदास की जीवनी

तुलसीदास की जीवनी-सम्बन्धी सामग्री के दो भाग हो सकते हैं। एक तो वह जिसका प्रमाण मौजूद है। दूसरा वह जो प्रचलित किंवदंतियों पर आश्रित हैं। तुलसीदास के जो जीवनचरित अव तक छपे हैं उनका अधिकांश किंवदन्तियों के आधार पर लिखा गया है। उन पर कहाँ तक विश्वास किया जा सकता है, यह प्रत्येक मनुष्य की इच्छा पर निर्भर है। अतः इस सामग्री को छोड़कर हम केवल उसी का उल्लेख यहाँ करेंगे जिसका कुछ न कुछ प्रमाण मिलता है। इसके भी दो भाग हैं—एक अन्तरङ्ग, दूसरा वहिरङ्ग। पहले बहिरङ्ग को लीजिए। उसमें मुख्य ये हैं—

बहिरङ्ग साक्ष्य की समालोचना

(अ) नाभाजी का भक्तमाल और उस पर प्रियादासजी की टीका। नाभाजी ने केवल एक छप्पय तुलसीदासजी की प्रशंसा में लिखा है—


त्रेता काय निबन्ध करी सतकोटि रमायन।
इक अच्छर उद्धरै ब्रह्महत्यादि परायन।
अब भक्तन सुख देन बहुरि लीला बिस्तारी।
राम चरन-रस-मत्त रटत अहनिशि व्रत-धारी।
संसार अपार के पार को सुगम रूप नौका लयो।
कलि-कुटिल-जीव-निस्तार हित वाल्मीकि तुलसी भयो।


इससे यह तो सिद्ध हुआ कि नाभाजी के अनुसार तुलसीदासजी प्रसिद्ध भक्त थे और रामायण बना चुके थे; परन्तु उनका और कुछ पता इससे न चला।

इस पर प्रियादासजी ने सुनी-सुनाई कहावतों के आधार पर अद्भुत टीका रच डाली—

तिया सों सनेह, बिन पूँँछे पिता गेह गई, भूली सुधि देह, भजे वाही ठौर आये हैं।
बंधू अति लाज मई, रिस सों विकस गई, प्रीति राम नई, तन हाड़ चास छाये हैं॥
सुनी जब बात, सब है गयो प्रभात, वह पीछे पछताय, तजि काशीपुरी धाये हैं।
किषो तहँ वास, प्रभु सेवा लै प्रकाश कीनो, लीनो दृढ़ भाव, नैन रूप के सिसाए हैं॥१॥