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की मित्रता का संकेत करके उनके चरण-कमलों का ध्यान धरकर योगाग्नि में देई जलाकर परधाम हो गई।

६-यवन (छंद ७६, उत्तर०)

यवन एक पापी म्लेच्छ था। वह अपनी बद्धावस्था में एक दिन शौच के उपरात आबदस्त ले रहा था कि उसे एक शूकर ने जोर से ढकेल दिया। इस पर वह चिल्ला उठा कि मुझे ‘हराम ने मारा,’ ‘हराम ने मारा’। वृद्धावस्था की कमजोरी के कारण वह इस आघात से मर गया। मरते समय हराम, हराम उच्चारण करने से भगवान् ने उसे अपना भक्त समझ कर (क्योंकि उसने हराम के साथ राम राम उच्चारण किया था) मुक्ति दी।

१०-ध्रुव (छंद ८८, उत्तर०)

स्वायंभुव मनु के पुत्र राजा उत्तानपाद के सुनीति और सुरुचि नाम की दो स्त्रियाँ थीं। ध्रुव बड़ी रानी सुनीति के और उत्तम छोटी रानी सुरुचि के पुत्र थे। राजा छौटी रानी से विशेष प्रेम रखते थे। एक समय राजा उत्तम को गोद में बैठाकर प्यार कर रहे थे। उस समय ध्रुव खेलते-खेलते आ पहुँचे और राजा की गोद में चढ़ने लगे। परतु राजा ने कुछ आदर या प्यार नहीं किया। गोद में चढ़ते देखकर विमाता ने डाहवश ध्रुव से कहा, “तुम राजा के पुत्र तो हों परतु मेरे गर्भ से न उत्पन्न होने के कारण राजा के आसन पर चढ़ने योग्य नहीं हो। अगर तुम राज्यासन पर चढ़ना चाहते हो तो मेरे गर्भ से उत्पन्न होने के लिए परमात्मा की आराधना करो।” यह सुनकर ध्रव को बडी़ ग्लानि हुई। वे माता से तप करने की आज्ञा लेकर घर से निकले; और तप करके अचल लोक के स्वामी हुए।

११–ब्याध (छंद ६२, उत्तरा०)
व्याधू वाल्मीकि जी को ही समझना चाहिए।
(देखो वाल्मीकि)
१२-श्वान (छंद १००, उत्तर०)
श्रीरामजी ने अयोध्या के एक कुत्ते की नालिश पर एक संन्यासी को दंड