और अहल्या को शाप दिया कि तू शिला ही जा। जब रामजी दर्शन देगे तब तेरा उद्धार होगा। वह शिलारूपिणी अहल्या रामजी के चरणस्पर्श से पवित्र होकर स्त्री-रूप होकर पुनः गौतम के पास चली गई।
एक दिन हैहय-वंशी राजा सहस्रबाहु शिकार खेलते-खेलते जमदग्नि मुनि के आश्रम में पहुँचा। कामधेनु के प्रभाव से मुनि ने सेना-सहित सहस्रबाहु का यथोचितसत्कार किया। मुनि में अपने से अधिक सामर्थ्य देखकर सहस्रबाहु उनसे कुढ़ा, उसकीआज्ञा से उसके नौकर बलपूर्वक बछडे सहित उस धेनु को माहिष्मती नगरी में उठा ले गए। जब मुनिजी के पुत्र परशुराम जी को यह समाचार मालूम हुआ तब उन्होने अपना फरसा लेकर सहस्रबाहु पर चढ़ाई की। सहस्रबाहु ने उनके मारने के लिए १७ अक्षौहिणी सेना भेजा, उसे परशुरामजी ने काट डाला। इस पर जब सहस्रबाहू लड़ने आया तब उसे भी मार डाला।
सत्ययुग का परशुराम वैश्य श्वासरोग से मर गया, तब उसकी स्त्री अपनी कुल-धर्म छोड़कर स्वजनों से दूर जाकर वेश्यावृत्ति करने लगी। एक दिन एक बहेलिया एक सुग्गे की बच्ची बेचने आया। उसने सुग्गा खरीदकर पुत्रभाव में उसे पुत्र बत् स्नेह से पाला और उसे रामनाम पढ़ाया। रामनाम पढ़ाते-पढ़ाते दोनों एक ही समय में मर गए, रामनाम के उच्चारण के प्रभाव से दोनो को मुक्ति हो गई।
किसी प्राचीन सत्ययुग में क्षीरसागर के त्रिकूट नामक पर्वत में वरुण देव का ऋतुमत् नामक बगीचा था; एक दिन उस बगीचे के सरोवर में एक मुदमत गजथूथपृति हरानियों सहित नहा रहा था। उसी समय एक बलवान् मकर ग्राह जो पूर्वजन्म में हूहू नाम का गंधर्व था) ने उसका पैर पकड़ लिया। गजराज तथा उसके साथियों ने भरसक उससे छुड़ाने के लिए चेष्टा की, परतु कोई भी इसे जल से निकाल न सका। जब गजराज अपने जीवन से हताश हो गया तब वह भगवान् का ध्यान करके उनकी स्तुति करने लगा।