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कवितावली


शिवजी, आप रामजी के भक्तों की इच्छाएँ पूरी करने के लिए कल्यवृन्ह के समान हैं, अतएव मै साता पर्वेती सहित ऋरपका सहारा चाहता हूँ । यह रोग भूत की तरह मुझ्के पीड़ित करता है जिससे मेरे लिए सब प्रकार की असुविधा हो रही है। [तः हे भूतनाथ, इस रोग रूपी भूत से मेरी रक्षा करो । मै आपके चरणकमलों को हाथ जोड़कर प्रार्थना करता आरप मुझे सीतापति रामचद्रजी का भक्त जानकर जिला दे तो ही है, नही तो मै आपसे सच कहता हूँ कि अगर आप मुझे मार दे तो मुझे मुँह मॉगी मौत मिलेगी (क्योंकि मै तो काशी में मरने ही के लिए रहता हूँ )। पिसाच-भूत-प्रेत-प्रिय, आपनी समाज सिव !आपु नीके जानिये । हूँ कि अगर मूल--भूतभव । भवत नाना बेष, बाहन, विभूषन, बसन, बास, खान पान, बलि पूजा बिधि को बखानिये ? राम के गुलामनि की रीति प्रीति सूधी सब, सबसों सनेह 'तुलसी' की सुधरै सुधारे भूतनाथ ही के, सबही को सनमानिये । मेरे माय बाथ गुरु संकर भवानिये | १६८॥ शब्दार्थ--भूतभव =पंच महाभूतो के कारण स्वरूप । भवत -श्राप | नीके= अच्छी तरह । बसन = वस्त्र | बास = निवासस्थान । को बखानिए कौन बर्णन कर सकता है । भवानिये 3 भवानी ही ( पार्वतीजी ही ) । भावार्थ-हे पच महाभूतो के दि करण शिवजी, आप पिशाच, भूत और प्रेतों के प्रिय हैं ( सब भूत आपके सेवक हैं ) । अत: पश्रपने (भूत-प्रेतादि के) समाज को अच्छी प्रकार जानते हैं | उनके अनेक प्रकार के घेष, अ्नेक प्रकार के बाहन, अनेक प्रकार के आभूषण, अनेक प्रकार के वस्त्र, अ्रनेक प्रकार के निवासस्थान, अनेळ ढंग के खान - पान और बलि पूजा के विधान का वर्णन कौन कर सकता है १ ( मैं कहाँ तक उনको प्रसन्न करने को सामग्री जुटाऊ)। रामचद्रभी के भकों की तो रीति-प्रीति सब सीधी-सादी है। ने सबसे स्नेह करते हैं श्रौर संवका सम्मान भी करते हैं । तुलखीदासजी कहते हैं कि मेरी बात तो शिवजी के सुधारने से ही सुधरेगी क्योंकि मेरे माई बाप, गुरू, सब कुछ श्रोशिव-पार्वती ही तो हैं।