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कवितावली

कवितावली २२२ बेष तौ भिखारि को, भयंक रूप संकर, दुयालु दीनबंधु दानि दारिद -दहनु है |॥१६०॥ शब्दार्थ-श्रीनिकेत्त =( श्री 3 लक्ष्मी+ निकेत -धर ) बैकठ | र्षम रग= एकात प्रेमी। गना=स्त्री, पावेतीजी ! महनु=(स० मथन) नाशक । भाव = ग्रेम, भक्ति । निगम- केद । अ्रगम= शास्त्र | जामित्रो 3D जानना । गहनु है= कठिन है | भयक = डरावना । सकर = (में ० श=कल्याण+ कर) कल्याणकारी । दहनु = जलानेवाले । भावार्थ-शिघजी के धर मे तो विभूति, भाग और वैल की सबारी ही है, पर याचचकों को धन-संपत्ति सहित लक्मी का घर ( बैकुठ ) ही दे डालते हैं | नाम तो वामदेव है पर सदा दाहिने रहते हैं ( अर्थात् भकतो पर सदा श्रनुकूल रहते है )। एकाकी रहना पसद् है, आधे शरीर मे स्त्री ( पार्वती ) पर कामदेव को भस्म करनेवाले हे । तुलसीदास कहते हैं कि शिवजी का हैं, प्रभाव भक्ति से ही सुगम हो सकता है, क्योकि उन्हे जानना शास्त्र र वेद के लिए भी कठिन है । उनका वेप तो भिखारियों का सा है, रूख मयकर है , पर वे कल्याण-कर्ता, दयालु, दीनो के बधु और दानी है औ दरिद्रता को दूर करनेवाले हैं । मूल-चाहै न अनंग-अरि एकौ अंग सरान को, बानि सो । देबोई पै जानिये सुभाव-सिद्ध बारिबुंद चारि त्रिपुरारि पर डारिए तौ, देत फल चारि, लेत सेवा साची (मानि सेो । 'तुलसी' भरोसो न भवेस भोलानाथ को तौ, कोटिक कलेख जरौ, मरौ छर छानि सो । दुख-दोष-दाह-दाबानल, दुनी न द्यालु दूजो दानि सूलपानि सो ॥१६१ शब्दार्थ-अनंग-अरि=कामदेव के शत्रु, शिवजी । एकौ अ- षोडशोपचार पूजा के १६ प्रकार के अयों में से एक भी अस । मगन को = मॉगनेवाले से । पै= निश्चय | सुभाव- सिद्ध - स्वाभाविक बानि =आदत । बारिदुद= जल की बूँ दे | मवेस ससार के स्वामी भोलानाथ= शिरजी का नाम। छार छानि मरौী %= धूल छानते छानते मर जाओ । छानि 3= ढूँढ़कर द्वारिद-दमन, ]]