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कवितावली


दैविक, भौतिक, अथवा, विष-अग्नि सर्प) से दग्ध नहीं होते। भंयकर भूत-बैताल इनके सखा है, और नाम इसका ‘भव’ है; फिर भी संसार के बडे़ बडे़ भयो को क्षण में नाश कर देते हैं। तुलसीदास के स्वामी शिवजी स्वयं तो बड़े दरिद्री से है,पर उनको स्मरण करने से दुःख और दारिद्र्य पास भी नहीं फटकते। यद्यपि (शिवजी के) घर में भग और ऑगन में धतूरे के वृक्षों के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हैं, तब भी इस न गे के सामने मॉगने- वालो की भीड़ लगी रहती है।

मूल—
 

सीस बसै बरदा, बरदानि, चढ़यो बरदा , घरन्यौ बरदा हैं।
घाम धतूरो बिभूति को कूरो, निवास जहाँ सब लै मरे दाहैं।
व्याली कपाली है ख्याली चहूँ दिसि भाँग की टाटिन के परदा हैं।
रॉक-सिरोमनि काविनिभाग विलोकत लोकप को? करदा हैं॥१५५॥

शध्दार्थ—बरदा= (१)वर देनेवाली गड्ग, (२)बैल। घाम= घर। कूरो= देर। सब= लाश। दाहैं= जलाते हैं। व्याली= सॉपो को (भूषण की तरह) धारण करनेवाला, शिवजी का नाम। कपाली= कपाल, खप्पर) धारण किए हुए, शिवजी का नाम। ख्याली= कौतुकी। रॉक-सिरोमनि= (रकशिरोमणि) दरिद्रों में श्रेष्ठ। काकिनिभाग= एक कौड़ी पाने की योग्यता रखनेवाला। विलोकत= दयादृष्टि से देखते ही। लोकप= लोकपाल। करदा= धूल, मैल। लोकप को= लोकपाल क्या हैं। करदा हैं= धूल हैं, तुच्छ हैं?

भावार्थ—शिवजी के सिर पर वर देनेवाली गङ्गाजी विराजमान हैं, स्वयं भी वर देनेवाले (अथवा श्रेष्ठ दानी) है, वरदा (बैल) पर ही चढ़े रहत हैं, गृहिणी पार्वती भी वरदेनेवाली है। पर घर मे धतूरे और विभूति का ही ढेर हैं श्रौर निवास भी वहाँ है जहाँ मृतको के शरीर ले जाकर जलाए जाते हैं (मसान)। सर्पं और खप्पर धारण करनेवाले शिवजी बड़े कौतुकी हैं। भॉग की टट्टियों का तो घर के चारों परदा है, पर दरिद्रों में श्रेष्ठ और कौड़ी पाने की योग्य। रखनेवाले को भी देखते ही इतना संपत्तिमान् बना देते हैं कि लोकपाल भी उसके सामने क्या हैं? केवल धूल से जान पड़ते हैं।