उत्तरकांड जो सीताजी के चरण-कमलों से चिह्नित है (अर्थात् जिस स्थान पर सीनाजी के चरण पड़े हैं) 'सीतामढी' नामक यह भूमि बारिपुर और दिगपर के बीच शोभायमान है। नोट-यह स्थान फँसो से कुछ दूर पूर्व भीटी' नामक स्टेशन के पास गगातट पर है। 'दिगपर' को अर'दीप' वा 'दिधउर' कहते हैं। 'वारिपुर' का मुझे पता नहीं चला। मूम-मरकत-बरन परन, फल मानिक से, लसै जटाजूट जनु रूख वेष हरु है। सुषमा को ढेरु, कैधौं सुकृत सुमेरु कैधौं, ___ संपदा सकल मुद-मंगल को घर है। देन अभिमत जो समेत प्रीति सेइये, प्रतीति मानि 'तुलसी' विचार काको थर है? सुरसरि निकट सोहावनी अवनि सोहै. राम-रमनी को बद कलि कास-तम है ।।१३६।। शब्दार्थ-मरक्त-वरन - पन्ना रन के समान अर्थात् हरे वर्ण के। वरन%=(स० वर्ण) रंग। परन % (स० पण) पत्ते । लसै = सुशोभित है। रूख =(स- वृक्ष प्रा. रुक्ख) पेड़। हरु = शिवजी। सुखमा(सं० सुषमा) परम शोभा (अत्यत शोभा को 'सुषमा' कहते हैं। सुकृत-मुमेरु पुण्यो का पर्चत । सुमेरु = यहाँ 'पर्वत' अर्थ में प्रयुक्त है । मुद -( स०) श्रानद । अभि मत-मन का इच्छित पदार्थ । काको थरु है - यह किसका स्थान है , वनि से यह अर्थ निकलता है कि यह स्थान सब मनोरथो को पूर्ण करनेवाली जगज्जननी सीताजी का है. किमी ऐसे वैसे का नहीं)। अवनि-पृथ्वी । राम- रमनी = सीताजी । कलि-कलियुग मे । कामतर = मनकामनाओं को देने- वाला कल्पवृक्ष । भावार्थ-(सीतावट के) पन्ना के रग के पचे और माणिक-समान फल हैं। उस पर जटाजूट ऐसे शोभायमान हैं मानों साक्षात् शिवजी वृक्ष के वेष में विराजे हो, यह वृक्ष अत्यंत शोभा का ढेर है, या पुण्यों का पर्वत है, अथवा सपत्ति और स पूर्ण श्रानन्द-मगल का घर है। अगर प्रीति-सहित उसकी सेवा करो वह स पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करता है। तुलसीदास
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उत्तरकाण्ड