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१७८
कवितावली

१७८ कवितावली (मत्तरायद सबैया) साँची कही कलिकाल कराल मै, हारो बिगारो तिहारो कहा है? काम को, कोह को, लोम को. मोह को, मोहि सों आनि प्रपंच रहा है। हौ जगनायक लायक आजु, पै मेरियौ देव कुटेव महा है। जानकीनाथ बिना, 'तुलसी जग दूसरे सो करिहों न हहा है ॥१०॥ शब्दार्थ-प्रपच = माया, जाल । मोहि सो पानि प्रपच रहा है = मेरे ही ऊपर जाल फैलाना हे। जगनायक - ससार के स्वामी । लायक-बड़े योग्य । व्यग्य से, बड़े खराब)। पैपर । मेरियो = मेरी भी। कुटेव= बुरी वान, हठ । हहा करिहौं - विनती करूंगा। भावार्थ-हे कराल' कलियुग, मैं सच कहता हूँ। मैने तेरा क्या बिगाड़ा है जो तू मेरे आर काम, क्रोध, लोभ, मोह का जाल फैलाता है (अर्थात् मुझे काम, क्रोध, लोभ और मोह में फंसाता है)। तुम ससार के स्वामी हो और सब कुछ करने में समर्थ हो, पर मेरी भी यह बड़ी भारी हठ है कि मैं सीतापति रामचद्रजी के अतिरिक्त किसी दूसरे से विनती नहीं करूँगा। नोट-----सत्सग मे सुना है कि 'मेवा' नामक एक भक्त की स्त्री ने गोस्वामी जी की परीक्षा लेनी चाही थी। कई बार एकात मे उनके पास थाई । पर गोस्वामीजी उसके चरणो पर गिर कर समझा बुझाकर लौटा देते थे। उसी समय ये छद (न०१००, १०१, १०२) गोस्वामीजी ने कहे थे। मूल- भागीरथी जलपान करौं अरु नाम द्वै राम के लेत नितै हौं । मोको न लेनो न देनो कछू कलि | भूलि न रावरी ओर चितैहों ।। जानि के जोर करौ, परिनाम, तुम्हें, पछितैहो पै मैं न भितैहौं।' ब्राह्मन ज्यों उगिल्यौ उरगारि, हौं त्योंही तिहारे हिये न हितैहौं॥१०२।। शब्दार्थ-नाम ? = सीता राम । नितै = प्रति दिन । चितेहौं = देलूँगा। जोर करौ =जबर्दस्ती करो । परिनाम - अतिम फल । पै-परंतु । मितेहौं- डरूँगा । उगिल्यौ- वमन कर दिया। उरगारि गराड़। हौ. मैस्यों ही- उसी प्रकार | हिये - ( यहाँ पर) पेट में। हितही=पचंगा, हितकारक हूँगा।