यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७१
उत्तरकांंड

तुम्हरो सब भॉति, तुम्हारिय सौं, तुम ही, बलि हौ मोकों ठाहरु हेरे।
बैरष बाँह बसाइए पै, ‘तुलसी’ घर ब्याध अजामिल खेरे॥९२॥

शब्दार्थ—जीजै= जीविति रहने को। ठाऊँ= स्थान। सुरालय हू को न सबल नेरे= स्वर्ग में जाने के लिये भी मेरे पास संबल नही है, अर्थात् मैने इतने पुण्य नहीं किए हैं जो मै स्वर्ग जा सकूँँ। जमबास= यमलोक। जमकिकर= यमदूत। नेरे= निकट। तुम्हारि सौं= आपको ही शपथ। ठाहरु= स्थान। हेरे= दिखलाई देता है। वैरष= (तु० बैरक) पताका, झंडा। प्राचीन काल में अगर किसी को घर, कुऑ, मदिर आदि बनाने होते थे तो जिस भूमि में बनाना चाहता था उसी भूमि को राजा से मॉग लेता था और उस भूमि मे राजा की अनुमति सूचित करने को एक झंडा गाड़ दिया जाता था जिससे कोई उसमे राजा की आज्ञा समझकर बाधा नही पहुँचा सकता था। पै= निश्चचय। तुलसी-घर= तुलसीदास का घर। खेरे= घरों का एक छोय समूह।

भावार्थ—जीवित रहने को न कोई स्थान है, न मेरा कोई अपना गाँव है, न मेरे पास स्वर्ग में जाने को ही संबल है (अर्थात् मैने ऐसे सुकृत भी नहीं किए जो मेरे स्वर्ग जाने में सहायक हो)। यमलोक मै जाऊँ क्योंकर? मै राम का नाम रटता हूँ, कौन यमदूत नेरे निकट आ सकता है। तुलसीदास कहते हैं कि हे रामचद्रजी, मुझे आपकी ही शपथ है, मै सब प्रकार से आपका हूँ। मै आपकी बलि जाऊँ, आप ही मुझको स्थान दिखलाई देते हैं। अपनी आज्ञासूचक पताका देकर अपनी शरण मे बसाइए। तुलसीदास का घर व्याध और अजामिल के ही गाँव मे हो (अर्थात् मै उन्ही के साथ आपके लोक मे बसूँँ)।

मूल—
 

का कियो जोग अजामिल जू, गनिका कबहीं मति पेम पगाई?
व्याध को साधुपनो कहिये, अपराध अगाधनि मै ही जनाई।
करुनाकर की करुना करना-हित, नाम-सुहेत जो देत दगाई।
काहे को खीझिय? रीझिय मै तुलसीहु सों है बलि सोई सगाई॥९३॥

शब्दार्थ—जोग= योग। पेम-प्रेम। मति पेम पगाई= प्रेम मे मन