यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६०
कवितावली


लोक= बिष्णु-लोक। अगमै=(महिमा का विशेषण है) न कही जा सकने योन्य।

भावार्थ— किसी समय एक अधे, नीच, मूर्ख, और बृद्वावस्था के कारण निर्बल यवन (भ्लेन्छ) को एक सूअर के बच्चे ने धक्का देकर ढकेल दिया। वह मार्ग में गिरा और हृदय मे भयभीत होकर "मुझे हराम (सूअर) ने मार डाला" इस प्रकार हाय हाय करते हुए मर गया। तुलसीदास कहते हैं कि वह रामनाम के प्रताप से शोकरहित बैकुठ लोक को चला गया, यह यात संसार में प्रकट है। अतः इस रामनाम की, जिसे आदमी स्नेहपूर्वक जपता है, अकथनीय महिमा कैसी कही जा सकती; है (भाव यह कि अज्ञानावस्था में रामनाम लेने से तो मोक्ष हो गया, प्रेम से रामनाम जपने से तो अपूर्व ही फल मिलेगा)?

मूल—जाप की न, तप खप कियो न तमाइ जोग,
जाग न, बिराग त्याग तीरथ न तनको।
भाई को भरोसो न खरो सो बैर बैरी हू सों,
'बल अपनो न, हितू जननी जनक को।
लोक को न डर, परलोक को न सोच,
देव-सेवान सहाय,गर्व धाम को न धन को।
राम ही के नाम ते जो होइ सोई नीको लगै,
ऐसोई सुभाय कछु'तुलसी' के मन को॥७७॥

शब्दार्थ—जाप न की= मैने जप नही किया। न तप खप कियो= न खूब अच्छी तरह से तप ही किया। खप= खपकर, पचकर, कष्ट सहकर। तमाइ= (तमअ-अरबी) लालच। न तमाइ जोग= योग द्वारा कुछ प्राप्त होने का भी मुझै लालच नहीं। विराग= सासारिक सुखो से उदासीनता। त्याग-दान। तनको= थोड़ा भी। खरो सो= अच्छी तरह। हितू= हितकारी। धाम= घर। नीको= अच्छा।

भावार्थ—न मैने मत्र का जाप ही किया, न कष्ट सहकर तपस्या ही मुझसे हो सकी, न मुझे योग द्वारा कुछ सिद्धि प्राप्त करने का ही लालच है, न मैंने कोई यज्ञ ही किया, न कुछ वैराग्य, दान या तीर्थ ही किया, न मुझे अपने भाई का कुछ भरोसा है और न मेरा किसी वैरी से ही