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कांडांक छन्दक पृष्टांक लं० १६ १०३ अ. २८५० २६ 10 दर उ० १२४ ३२४ १८६ "बालि दलि, काल्हि जलजान पाषान किय बालि से बीर बिदारि सुकंठ बासव बरुन विधि बन ते सुहावतो बिंध्य के बासी उदासी बिनय सनेह सौ कहति सीय बिजटा से बिपुल बिसाल बिकराल कपि भालु मानौ बिरची बिरंचि की बसति बिस्वनाथ की जो बिस्वबिजयी भृगुनायक से बीथिका बजार प्रति, अनि अगार प्रति बेद न पुरान गान, जानौं न विज्ञान ज्ञान बेद पढ़े बिधि, संभु सभीत बेद-बिरुद्ध, मही, मुनि, साधु बेद पुरान बिहाइ सुपंथ बेद हू पुरान कही, लोकहू बिलोकियत देष बिराग को, राग भरो मनु ब्रह्म जो व्यापक बेद कहैं विष-पावक, ब्याल कराल गरे मुं० १७ उ० ६२ " २ २०४ १४४ १२० ? ६२ १३५ २२७ २१६ २७६ १२८ १३७ " १५४ १७१ १०८ बा. १५ उ. १२१ १५३ भलि भारत भूमि, भले कुल जन्म भले भूप कहत भले भदेस भूपनि सौ भयो न तिकाल तिहूँ लोक तुलसी सो मंद भस्म अंग मर्दन अनंग भागीरथी जलपान करौ भूतनाथ भयहरन भूतभव ! भवत पिसाच-भूत-प्रेत-प्रिय भूप मंडली प्रचंड चंडीस-कोदंड खंड्यौ भूमिपाल, व्यालपाल, नाकपाल, लोकपाल भूमि भूमिपाल च्यालपालक पताल भेष सु बनाइ, सुचि बचन कहैं चुवाइ " १०२ " १५२ " १७० चा० १८ २६३ २६१ २४४ २६४ ३१० १८ १४३ १७० १८० १० १०३ सुं० २२ उ० ११६ २६१