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(१६) कांडांक छन्दांक पृष्ठांक लं० २३ १०७ ६८ १६८ . ११७ सुं० २३ ७५ प्रभु सत्य करी प्रहलाद-गिरा "पवन को पूत देखो, दूत बोर आँकुरा, जो पाइ सुदेह बिमोह-नहो-तरनी -पातक पीन, कुदारिद दोन पात भरी सहरी सकल सुत बारे बार। पान, पकवान बिधि नाना को, सँधानो सीधे 'पानी पानी पानी' बस रानी अकुलानी कहैं पाप हरे, परिताप हरे पालिबे को कपि-भालु-चमू "पावक, पवन, पानी, भानु, हिमवान, जम पिंगल जटा-कलाप, माथै पै पुनीत आप पुर ते निकसी रघुवीरबधू प्रेम से पीछे तिरीछे प्रियाहि ६ NoCom MGIG cmM उ० ५८ लं० २६ सुं० २१ उ० १५६ अ० ११ 6 २० " २६ प उ० ६४ २०६ ० ० ० २४१ १४२ ३ १३५ २२६ बचन बिकार, करसबड खुमार, मन । बड़े बिकराल भालु, बानर बिसाल बड़े बड़ो बिकराल बेष देखि, सुनि सिंहनाद बनिता बनी श्यामल गौर के बीच बबुर बहेरे को बनाइ बाग लाइयत बर दंत की पंगति कुन्दकली बरन-धरम गयो, पाश्रम निवास बज्यो बल्कल बसन, धनु-बान पानि, तून कटि बसन बटोरि बारि बारि खेल तमीचर व्यात कराल, महा विष, पावक बानी, विधि, गौरी, हरि, सेस हूँ, गनेस कही बापु दियो कानन भो मानन सुभानन सो धारि तिहारो निहारि मुरारि बालक बोलि दिये बलि काल, को बालधी बिसाल विकराल ज्वाल-जाल मानों . Je १६० ११४ ___३० ४८ बा० १६ पद ११४७ १४० २८९ २७२ ५७ १५८ ३५ सु. ५