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रात को उसने बालि को लड़ाई के लिए ललकारा। बालि ने उसका पीछा किया। राक्षस भागकर एक गुफा में घुस गया। बालि भी उसके पीछे गया, जाते समय सुग्रीव से कह गया कि १५ दिन मेरा इन्तज़ार दरवाजे़ पर करना, फिर समझना कि मैं मारा गया। सुग्रीव ने एक महीना राह देखी, तब गुफा से रुधिर की धारा निकली। सुग्रीव ने समझा कि बालि मारा गया और राक्षस निकलकर उसे भी मारेगा। वह गुफा के द्वार पर एक भारी शिला रखकर चला आया। शहर में राजा न होने से लोगों ने बालि को मरा जानकर सुग्रीव को राजा बना दिया। इतने में बालि राक्षस को मारकर नगर को लौटा और सुग्रीव को राजा देखकर बड़ा क्रोधित हुआ। सुग्रीव को मारकर बालि ने भगा दिया और वह फिर राजा हो गया तथा सुग्रोव की स्त्री को भी हर लिया। सुग्रीव एक पहाड़ पर जाकर रहने लगा। जब रामचन्द्रजी उधर से निकले तो सुग्रीव से उनकी मित्रता हो गई। सुग्रीव ने अपना सब हाल रामचन्द्र से कहा। रामचन्द्र ने एक ही बाण से बालि को मार डाला और जो वर उसे मिला था उसे कायम रखने के लिए पेड़ की ओट से बान चलाया।
४—‘माहिष्मती को नाथ’ (लङ्का० छं० १०९)

सहस्रबाहु माहिष्मती का राजा था। एक बेर शिकार खेलते-खेलते यह जमदग्रि मुनि के आश्रम में पहुँचा। वहाँ ऋषि ने कामधेनु के द्वारा ससैन्य उसका आतिथ्य किया। राजा को भारी आश्चर्य हुआ और कामधेनु को ही सब ऐश्वर्य का मूल जानकर वह उस पुकारती हुई गाय को माहिष्मती ले गया। जब जमदग्रि के पुत्र परशुरामजी, जो अस्त्रविद्या में बड़े ही निपुण थे, घर आये और उन्होंने जब यह वृत्तान्त सुना तो उन्हें बड़ा क्रोध हुआ और उन्होंने सहस्रबाहु का पीछा किया। सहस्रबाहु भी दल-सहित उनसे लड़ा, परन्तु परशुराम ने उसे ससैन्य मार डाला और वह कामधेनु को घर लौटा लाये।

एक बार रावण सहस्रबाहु के ऐश्वर्य और शक्ति तथा बल को सुनकर उससे लड़ने को गया। सहस्रबाहु का बल सुनने का अवसर यह हुआ कि एक बार रेवा नदी के किनारे सहस्रबाहु विहार कर रहा था और विहार में अपने १००० बाहुओं से उसने नदी का प्रवाह रोक दिया जिससे नदी उलटी बहने लगी और रावण का डेरा बह गया। जब रावण लड़ने गया तो सहस्रबाहु ने उसे सहज ही कै़द कर लिया और स्त्रियाँ आकर उसे मार-मार जाती थीं। यह दशा देख पुलस्त्य ऋषि को दया आई और उन्होंने जाकर छुड़ा दिया।
५—‘बायस, बिराध, खर, दूषन, कबन्ध, बालि’ (लङ्का० छं० १११)।