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उत्तरकाण्ड

अर्थबालि (अर्थात् बैरी) के भाई को तो मित्र और उसके पुत्र को दूत, तथा रावण (से वैरी) के भाई को मन्त्री बनाया, शवरी और जटायु का सराध साधा (किया), लङ्का जो जली तो विभीषण का सोच हुआ। कहो ऐसे साहब की सेवा की कौन इच्छा न करे? (यों तो) एक एक से बड़ा है और अनेक लोकों के अनेक लोकनाथ हैं और अपने-अपने की बात को कौन कम करके कहेगा, परन्तु छोटे की सेवा को सराहनेवाला, याद करनेवाला और कुमति को काटनेवाला राम सा दूसरा साहब नहीं है।

[१६५]


भूमिपाल, ब्यालपाल, नाकपाल, लोकपाल,
कारन-कृपालु, मैं सवै के जी की थाह ली।
कादर को आदर काहू के नाहिं देखियत,
सबनि सोहात है सेवा-सुजानि टाहली॥
तुलसी सुभाय कहैं नाहीं कछु पच्छपात,
कौने ईस किये कीस भालु खास माहली।
राम ही के द्वारे पै बुलाइ सनमानियत,
मोसे दीन दूबरे कुपूत कूर काहली॥

अर्थभूमिपाल (राजा), ब्यालपाल (शेष आदि), स्वर्ग के पालक (देवता), लोकपाल, पाताल के पालक (दानव), मैंने सबके जी की थाह ली है। यह सब कारणवश कृपा करनेवाले हैं। कादर का आदर कोई नहीं करता दिखाई देता। सबको अच्छी सेवा-टहल भाती है। तुलसी सुभाय से कहता है, कोई पक्षपात नहीं है। (भला) बन्दर भालु को किसने खास माहलो (महलवाला) किया है? मुझसे दीन कपूत काहिल राम ही के द्वारे पर बुलाकर आहत होते हैं।

[ १६६ ]


सेवा अनुरूप फल देत भूप कूप ज्यों,
बिहूनेगुन पथिक पियासे जात पथ के।
लेखे जोखे चोखे चित तुलसी स्वारथ हित,
नीके देखे देवता देवैया घने गथ के॥