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चित्रकला


इस प्रकार विभिन्न प्रकार की रेखाओं के योग से विभिन्न प्रकार के भाव उत्पन्न किये जा सकते हैं।

रंग

चित्रकला में सबसे अधिक महत्त्व रंग को दिया जाता है। इसका कारण यह है कि मनुष्य की दृष्टि रंगीन वस्तुओं पर पहले जाती है, तब सादी वस्तुओं पर। यदि किसी वस्तु की ओर हमें लोगों की दृष्टि आकृष्ट करनी हो तो उसमें सबसे पहले अत्यन्त चटकीला भड़कीला रंग देना पड़ता है। वैसे तो बहुत से पक्षी घरों में पाले जाते हैं, पर तोता अधिक पसन्द किया जाता है, क्योंकि उसका रंग बहुत आकर्षक होता है। यह बात मनुष्य की प्रकृति में बचपन से ही होती है। बचपन में लड़के लाल रंगकी वस्तुएँ अधिक चाहते हैं, क्योंकि वे अधिक भड़कीली और चमकीली होती हैं।

पर जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं वैसे-वैसे हमारी अभिरुचि कुछ विशेष रंगों की ओर होने लगती है। कोई नीले रंग के वस्त्र चाहता है, कोई हरे और कोई लाल। इसका मनोवैज्ञानिक कारण यह है कि मनुष्य की शान्त, उग्र, सरल, हँसमुख, लजीली तथा उद्दण्ड; जैसी प्रकृति होती है वैसा ही शान्त रंग, गर्म रंग, शीतल रंग, मटमैला रंग वह चुनता है। बहुत से लोग किसी का वस्त्र और उसका रंग ही देखकर बड़ी सरलता से उसका स्वभाव और चरित्र जान लेते हैं। इसका कारण है कि प्रत्येक रंग की अपनी एक विशेषता, स्वभाव तथा मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है। यदि कोई व्यक्ति विभिन्न रंगों की विशेषताओं से परिचित हो तो वह बहुत सफलता से ये सब बातें बता सकता है। इसी तरह चित्रकला में भी यदि चित्रकार को रंग और उसके स्वभाव का पूर्ण परिचय या अध्ययन हो तो वह अपने चित्रों में रंगों का इस प्रकार प्रयोग कर सकता है कि उन रंगों को देखकर और उनके गुणों को पहचान कर कोई भी यह जान सकता है कि चित्र में किस तरह के स्वभाव या मनोभावों का वर्णन है। जिन चित्रकारों ने रंगों का इस प्रकार वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करके चित्रांकन किया है, निस्सन्देह उनके चित्र उतने ही प्रभावशाली हैं और वे उतने ही कुशल चित्रकार हैं। इसी प्रकार जो लोग चित्रों को केवल देखकर आनन्द उठाना चाहते हैं, उनके भी अध्ययन का एक वैज्ञानिक आधार होना चाहिए और तभी वे चित्रों का पूरा आनन्द प्राप्त कर सकते हैं। नीचे हम प्रधान रंगों के मनोवैज्ञानिक प्रभाव का विवरण दे रहे हैं।